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* २७८ * कर्मविज्ञान : परिशिष्ट *
अस्तित्व का स्वरूप २९, आत्मा का असाधारण गुण : चैतन्य ३0, आत्मा को सर्वव्यापी एवं एकान्त अमूर्त मानना भी ठीक नहीं ३०, आत्मा के ज्ञानादि गुण, गुणी (आत्मा) के साथ ही रहेंगे ३१. आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा स्वतंत्र आत्मा मान्य ३२, जैव-वैज्ञानिकों द्वारा आत्मा का स्वतंत्र अस्तित्व सिद्ध ३२, मनोवैज्ञानिक भी आत्मा की स्वतंत्र एवं शाश्वत सत्ता से सहमत ३२. भौतिकविज्ञान द्वारा भी आत्मा का स्वतंत्र अस्तित्व अस्वीकृत नहीं ३३, जहाँ-जहाँ संसारी आत्मा, वहाँ-वहाँ कर्म अवश्यम्भावी ३४। (२) जहाँ कर्म, वहाँ संसार
पृष्ठ ३५ से ४८ तक ___ आत्मा की शुद्ध दशा प्राप्त कराना ही जैनदर्शन का लक्ष्य ३५, आत्मा की दो अवस्थाएँ : क्यों. कैसी और कैसे? ३५, संसार तथा संसारी (अशुद्ध) दशा का मुख्य कारण : कर्म ३८. कर्म और संसार का अविनाभाव सम्बन्ध ३९, संसार-चक्र : कर्म-चक्र के कारण ३९, संसार की दुःखरूपता का मूल कारण : कर्म ४०, संसार का दुःखमय रूप ४०, संसार दुःखमय क्यों? ४१. संसार का सूक्ष्म और स्थूल स्वरूप ४२, जहाँ संसार है, वहाँ राग-द्वेषादि जनित कर्मजन्य दुःख हैं ४२, तृष्णा और मोह मिटते ही दुःख मिट जाता है ४२, यही वह संसार है ४३, कर्म के अस्तित्व का प्रवल प्रमाण : प्रत्यक्ष दृश्यमान संसार ४४, आगम-प्रमाण से भी कर्म का अस्तित्व सिद्ध है ४४, भतवादियों द्वारा मान्य केवल इहलौकिक क्रिया-कर्म ४५, कर्म के कारण ही भूत-भविष्यकालीन विचित्रताओं से भरा संसार ४६, ईश्वर-कर्तृत्ववादियों की दृष्टि में संसार का कारण कर्म नहीं, ईश्वर है ४६, जैनदर्शन द्वारा ईश्वरकृत संसार का निराकरण ४७-४८।। (३) कर्म-अस्तित्व के मूलाधार : पूर्वजन्म और पुनर्जन्म-१
पृष्ठ ४९ से ६0 तक ___ कर्म का सम्बन्ध प्राणी के अतीत और अनागत से भी ४९. कर्म-अस्तित्व से इन्कार : इहजन्मवादियों द्वारा ५०, कर्म के अस्तित्व के मूलाधार : पूर्वजन्म और पुनर्जन्म ५०, पूर्वजन्म और पुनर्जन्म : क्यों माने जाएँ? ५०, प्रत्येक प्राणी की जीवन यात्रा : कई जन्मों से, कई जन्मों तक ५०. पूर्वजन्म या पुनर्जन्म के समय शरीर नष्ट होता है, आत्मा नहीं ५१, अल्पज्ञों को जन्म से पूर्व एवं मृत्यु के बाद की अवस्था का पता नहीं ५२, प्रत्यक्षज्ञानियों द्वारा कथित पूर्वजन्म-पुनर्जन्म-वृत्तान्त ५३, सर्वज्ञ वीतराग प्रभु-वचनों से पूर्वजन्म-पुनर्जन्म और कर्म का अविनाभावी सम्बन्ध ५८, प्रत्यक्षज्ञानियों द्वारा कर्म के साथ अतीत-अनागत जीवन का निर्देश ५८. प्रत्यक्षज्ञानियों ने परोक्षज्ञानियों को युक्तिपूर्वक समझाया ५९-६०। (४) कर्म-अस्तित्व के मूलाधार : पूर्वजन्म और पुनर्जन्म-२ ___ पृष्ठ ६१ से ८९ तक
पुनर्जन्म को माने बिना वर्तमान जीवन की यथार्थ व्याख्या सम्भव नहीं ६१, प्रत्यक्षज्ञानियों और भारतीय मनीषियों द्वारा पुनर्जन्म की सिद्धि ६१, विभिन्न दर्शनों और धर्मग्रन्थों में कर्म और पुनर्जन्म का निरूपण ६२, ऋग्वेद में कर्म और पुनर्जन्म का संकेत ६२, उपनिषदों में कर्म और पुनर्जन्म का उल्लेख ६२, भगवद्गीता में कर्म और पुनर्जन्म का संकेत ६३, बौद्धधर्म-दर्शन में कर्म और पुनर्जन्म ६४, न्याय-वैशेषिकदर्शन में कर्म और पुनर्जन्म ६५, पूर्वजन्म में अनुभूत विषयों की स्मृति से पुनर्जन्म-सिद्धि ६६, पूर्वजन्म के वैर-विरोध की स्मृति से पूर्वजन्म की सिद्धि ६७, राग-द्वेषात्मक प्रवृत्ति से पूर्वजन्म-सिद्धि ६७, आत्मा की नित्यता से पूर्वजन्म और पुनर्जन्म सिद्ध ६७, देहोत्पत्ति में पंचभूत-संयोग नहीं, पूर्वकर्म ही निरपेक्ष निमित्त है ६८, अदृष्ट (कर्म) के साथ ही पूर्वजन्म-पुनर्जन्म का अटूट सम्बन्ध ६९, सांख्यदर्शन में कर्म और पुनर्जन्म ६९, कर्म और कर्मफलरूप पुनर्जन्मादि का संयोग कराने वाला : अपूर्व ७१, योगदर्शन में कर्म और पुनर्जन्म ७१, जैनदर्शन में कर्म और पूर्वजन्म-पुनर्जन्म ७१. महाभारत में पूर्वजन्म और पुनर्जन्म ७२, मनुस्मृति से भी पुनर्जन्म की अस्तित्व-सिद्धि ७२. पुनर्जन्मवाद-खण्डन, एकजन्मवाद-मंडन : दो वर्ग ७२, पुनर्जन्म का निषेध करने वाला द्वितीय वर्ग भी प्रकारान्तर से उसका समर्थक ७३, पूर्वजन्म-पुनर्जन्म-सिद्धान्त पर कुछ आक्षेप और उनका परिहार ७८, I प्रथम आक्षेप : विम्मृति क्यों ? ७८. II दूसरा आक्षेप : आनुवंशिकता का विरोधी सिद्धान्त ८१, III तीसग आक्षेप : इहलौकिक जगत्हित के प्रति उदासीनता ८१, IV चौथा आक्षेप : पुनर्जन्म का मानना अनावश्यक ८२. बालकों में ये विशिष्ट प्रतिभाएँ पूर्वजन्म को माने बिना कहाँ से आती ? ८२, पूर्वजन्म-पुनर्जन्म का स्वीकार : मानव-जाति के लिए आध्यात्मिक उपहार ८५, पूर्वजन्म-पुनर्जन्म की मान्यता से आध्यात्मिक आदि अनेक लाभ ८६, V पंचम
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