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________________ * २७२ * कर्मविज्ञान : भाग ९ * पर चल रहा था। गुरुदेव को भी कोई कष्ट नहीं हो रहा था। गुरु ने पूछा-“वत्स ! पहले तो तुझे बार-बार ठोकरें लगती रहीं, अब तू अंधकार में भी सीधा चल रहा है, क्या कारण है? क्या कोई ज्ञान उत्पन्न हुआ है?'' शिष्य ने विनीत स्वर में कहा-"गुरुदेव ! आपकी कृपा से केवलज्ञान प्राप्त हो गया है।" गुरु एकदम चौंक और शिष्य के कन्धे से नीचे उतरे, तब तक सूर्योदय हो चुका था। गुरु ने पश्चात्ताप के स्वर में कहा-“धिक्कार है मुझे ! मैंने तुम पर रोष किया, केवली की आशातना की। मुझे क्षमा करो।" इस प्रकार गहन पश्चात्ताप और आत्मालोचना करते-करते आचार्य आत्म-ध्यान में डूब गए। उन्हें भी कैवल्य की प्राप्ति हो गई।' मृगावती साध्वी को और उसके निमित्त से आर्या चंदनबाला को केवलज्ञान-प्राप्ति इसी प्रकार एक बार साध्वी मृगावती जी भगवान महावीर के समवसरण में साध्वीश्रेष्ठा चंदनबाला जी आदि साध्वियों के साथ बैठी थीं। सूर्य-चन्द्र दोनों के प्रभु-दर्शनार्थ आने से सर्वत्र प्रकाश हो रहा था। अन्य साध्वियाँ तो यथासमय अपने स्थान पर चली गईं, किन्तु मृगावती जी को प्रकाश होने से समय का ध्यान नहीं रहा। सूर्य-चन्द्र के चले जाने पर अचानक अँधेरा छाया तो उन्हें भान हुआ। वे अपने स्थान पर शीघ्र पहुँची। आर्यश्रेष्ठा चंदनबाला जी ने मृगावती जी की इस अक्षम्य भूल के लिए उपालम्भ किया। मृगावती जी ने अपनी भूल के लिए चंदनबाला जी से क्षमा याचना की। चंदनबाला जी सो गईं। मगर मृगावती जी मन ही मन अपनी भूल के लिए पश्चात्ताप करने लगीं। आत्मालोचन करते-करते स्वभाव-रमणता का वेग इतना बढ़ा कि सहसा क्षपकश्रेणी पर आरूढ़ होकर केवलज्ञान प्राप्त कर लिया। तभी मृगावती जी ने केवलज्ञान के प्रकाश में देखा कि महासती चन्दनबाला के हाथ के पास से एक काला साँप जा रहा है। अतः तत्काल उनका हाथ ऊपर कर दिया। हाथ उठाने से चंदनबाला जी की नींद खुली। जगाने का कारण पूछा तो मृगावती ने साँप वाली बात कही। चंदनबाला ने पूछा-“इतनी अँधेरी रात में आपको साँप कैसे दिखाई दिया? क्या कोई विशिष्ट ज्ञान हुआ है ?'' मृगावती जी-“आपकी कृपा हुई है तो क्यों नहीं होगा?'' चंदनबाला-“क्या केवलज्ञान हुआ है?'' मृगावती जी-“आपकी कृपा का ही सारा फल है।" चंदनबाला ने अपने आप को सँभाला, सोचा-'मैंने केवली की आशातना की। नींद खुलने से मुझे भी आवेश आ गया। फिर भी मृगावती जी ने कितनी समता और शान्ति का परिचय दिया !' यों अन्तर्मुखी होकर आत्म-स्वभाव का चिन्तन करते-करते चंदनबाला को भी केवलज्ञान प्राप्त हो गया। १. देखें-चण्डरुद्राचार्य के वृत्तान्त के लिए आवश्यक मलयगिरि वृत्ति तथा जैनकथा कोष, पृ. १३९ २. देखें-मृगावती साध्वी का जीवन-वृत्त, आवश्यक नियुक्ति एवं दशवैकालिक नियुक्ति में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004250
Book TitleKarm Vignan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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