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________________ * २७० * कर्मविज्ञान : भाग ९* सामायिकव्रती केशरी चोर का हृदय परिवर्तन और केवलज्ञानार्जन कैसे हुआ ? केशरी कामपुर के राजा विजयचन्द्र के राज्य के प्रसिद्ध व्यापारी संघदत्त का पुत्र था। बचपन में उसकी धर्मध्यान में बहुत रुचि थी । गुरुदेव से सामायिक के पाठ सीखकर उसने प्रतिदिन सामायिक करने का नियम लिया। वह विधिपूर्वक सामायिक लेता और पारता था । केशरी की सामायिक की इस प्रवृत्ति से पिता प्रसन्न था, किन्तु ज्यों-ज्यों केशरी बड़ा हुआ, कुसंगति में पड़ने से उसमें अनेक दुर्गुण, विशेषतः चोरी का भयंकर दुर्गुण लग गया। चोरी किये बिना उसे एक दिन भी चैन नहीं पड़ता था । पिता और राजा ने उसे बहुत समझाया, धमकी भी दी, परन्तु नहीं माना तो राजा ने उसे देश निकाला दे दिया। वह राज्य छोड़कर वन में चला गया। सरोवर का पानी पीकर प्यास शान्त की । सोचने लगा- 'क्या आज मैं बिना चोरी किये ही रहूँगा ?' इतने में एक व्यक्ति आकाश से उतरा। उसके पैरों में पादुकाएँ थीं जिन्हें उसने खोलकर झाड़ी में छिपा दीं और सरोवर में नहाने के लिए घुसा। तभी मौका देखकर केशरी झाड़ी में से पादुकाएँ लेकर चंपत हो गया। अब तो वह पादुका पहन चाहे जहाँ शीघ्र आकाशमार्ग से पहुँच जाता । नगर में उसकी चोरियों के कारण हाहाकार मच गया। अब वह किसी की पकड़ में नहीं आता था। स्वयं राजा विजयचन्द्र ने उसे पकड़ने का बीड़ा उठाया। राजा सशस्त्र सैन्य लेकर निकल पड़ा। राजा ने सब जगह छान ली, पर कहीं उसका पता न लगा। राजा थककर एक पेड़ के नीचे विश्राम लेने लगा। तभी वहाँ केसर आदि की सुगन्ध आई। सोचा- 'कहीं मंदिर होगा आसपास ।' थोड़ी दूर एक चण्डी का मन्दिर था। राजा ने देखा - वस्त्राभूषण सहित एक व्यक्ति पूजा कर रहा है। समझ गया कि यही चोर है। दूसरे दिन राजा उसे पकड़ने को झपटा तो वह पकड़ से छूटकर वन की ओर भागा। पादुकाएँ वहीं छूट गईं। राजा ने उन्हें उठा लिया। अतः केशरी पैदल कहाँ तक भागता ? केशरी पैदल दौड़ता-दौड़ता थक गया। भागते-भागते वन में एक ध्यानस्थ मुनि के दर्शन हुए । केशरी ने मुनि से उद्धार का मार्ग पूछा तो उन्होंने कहा- "राग-द्वेषमुक्त होकर प्रवृत्ति करने से ही उद्धार हो सकता है।” केशरी ने अपने पापों की आलोचना, आत्म-निन्दा और गर्दा की। मुनि से प्रायश्चित्त लिया। यों वह आत्म शुद्धि करके आत्म-चिन्तन में लीन हो गया । तभी उसके जीवन में अपूर्व एवं उत्कृष्ट आत्म-भावों की धारा में बहते - बहते उसके मोहकर्म तथा शेष तीन घातिकर्म क्षय हो गए और सेना सहित राजा वहाँ पहुँचा, तब तक उसे केवलज्ञान हो गया। कर्मबीज राग-द्वेष-मोह के नष्ट होते ही केवलज्ञान प्रकट हो गया। राजा के द्वारा इस परिवर्तन का कारण पूछा गया तो उसने कहा- यह सब चमत्कार सविधि शुद्ध भाव से सामायिक का है कि मेरे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004250
Book TitleKarm Vignan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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