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* २६८ * कर्मविज्ञान : भाग ९ *
हुआ। भोजन करते-करते निराहारी आत्मा के ध्यान में लीन हो गये। शुक्लध्यान की उज्ज्वलता तथा क्षमा की पराकाष्ठा के कारण भोजन का ग्रास लेने वाला हाथ वहीं रुक गया। क्षपकश्रेणी पर आरोहण करके शुक्लध्यान में लीन मुनि का मोहकर्म समूल नष्ट हो गया, साथ ही शेष तीनों घातिकर्म भी समूल नष्ट हो गये, उन्हें वहीं केवलज्ञान-केवलदर्शन प्राप्त हो गया। जब देवता और देवेन्द्र उनका कैवल्य महोत्सव मनाने आये तो आचार्यश्री आदि को पता लगा। वे भी आत्म-चिन्तन में डूब गये। मन ही मन कूरगडूक की क्षमावृत्ति का अंकन करते हुए पहले अनुताप धारा और फिर आत्म-भावों की धारा में बहने लगे। भावों में विशुद्धि आते ही उन्होंने भी तत्काल केवलज्ञान प्राप्त कर लिया।' मन्द बुद्धि माषतुष मुनि को केवलज्ञान किस कारण से हुआ ? ___ माषतुष मुनि तो बिलकुल मन्द बुद्धि थे, किन्तु देव, गुरु, धर्म पर उनकी
अटल श्रद्धा थी। गुरुदेव के समक्ष विनयपूर्वक निवेदन किया-"गुरुदेव ! मुझे एक गाथा भी दिनभर में याद नहीं होती। क्या करूँ? कैसे मेरा कल्याण होगा?" गुरुदेव ने समझाया-आत्मा में अनन्त ज्ञान है, पर पूर्वबद्ध कर्मों के कारण आवृत है, आवरण के मूल कारण हैं-राग-द्वेष ! इनके दूर होते ही ज्ञान प्रकट होते देर न लगेगी। तुम्हें मैं छोटा-सा वाक्य याद करने के लिए देता हूँ-“मा रुष, मा तुष।" इसी को निष्ठापूर्वक रटते रहो। गुरु-वचनों पर निष्ठा रखकर रटने लगा। रटते-रटते वह वाक्य तो याद न रहा, उसके बदले रटने लगा-माष-तुष। एक दिन मन में इसके अर्थ पर ऊहापोह हुआ-माष का अर्थ है-उड़द और तुष का अर्थ है-छिलका। ये दोनों पृथक्-पृथक् हैं, पृथक् किये जा सकते हैं, इसी प्रकार स्वभाव
और परभाव, आत्मा और शरीर ये पृथक्-पृथक् हैं। मैं अब तक शरीर के ही धर्मों को आत्मा के धर्म समझ रहा था। इस प्रकार वह चिन्तन करता है; भेदविज्ञान की प्रबल भाव धारा और शुक्लध्यान की धारा में चढ़ते हुए उसका मोहकर्म नष्ट हो गया, शेष तीन घातिकर्म भी नष्ट हो गये और माषतुष मुनि को केवलज्ञान प्राप्त हो गया।
अर्जुन मुनि को कैवल्य और मोक्ष कैसे हो गया ? ___अर्जुन मुनि ने पूर्व जीवन में यक्षाविष्ट होकर १,१४१ व्यक्तियों की हत्या कर दी थी, परन्तु उनके मन में तीव्र कषाय नहीं था, तीव्र द्वेषभाव नहीं था, इसलिए निकाचित रूप से कर्मबन्ध नहीं हुआ था। उनके शरीर से यक्ष के निकलते ही, सुदर्शन श्रमणोपासक के सत्संग से वे भगवान महावीर की सेवा में पहुँचे और वहीं
१. देखें-कूरगडूक मुनि का वृत्तान्त आचारांग चूर्णि में तथा जैनकथा कोष में २. देखें-माष-तुष मुनि का वृत्तान्त आवश्यकसूत्र हारि. वृत्ति में
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