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* २५६ * कर्मविज्ञान : भाग ९ *
श्रावक-श्राविका, उपासक-उपासिका आदि में से किसी से बिना सुने ही केवलिप्ररूपित धर्मश्रवण का लाभ आदि प्राप्त कर लेता है।
‘भगवतीसूत्र' (अ. ९, उ. ३१) में असोच्चा केवली से सम्बन्धित ११ प्रश्न उठाकर उनका समाधान 'हाँ' और 'ना' दोनों प्रकार से किया गया है। वे इस प्रकार हैं-असोच्चा केवली पूर्वोक्त केवली या केवली पाक्षिक आदि १0 में से किसी एक से बिना सुने ही (१) केवली प्रज्ञप्त धर्म का श्रवण कर सकता है? (२) केवल बोधि (शुद्ध बोधि = सम्यग्दर्शन) प्राप्त कर लेता है ? (३) मुण्डित होकर आगारवास शुद्ध अनगार धर्म को स्वीकार कर लेता हैं ? (४) शुद्ध ब्रह्मचर्यवास को धारण कर सकता है? (५) शुद्ध संयम से संयमित होता है? (६) शुद्ध संवर से संवृत होता है ? (७-८-९-१०) आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान या मनःपर्यायज्ञान का उपार्जन कर लेता है? (११) अथवा वह केवलज्ञान को प्राप्त कर लेता है? इन सब प्रश्नों का एक उत्तर हाँ में है, वहाँ तो कोई प्रश्न ही नहीं है, जहाँ एक उत्तर 'ना' में दिया है, उसका कारण पूछने पर इस प्रकार समाधान दिया गया है-(१) जिस जीव ने ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं किया, वह केवलिप्रज्ञप्त धर्म-श्रवण का लाभ प्राप्त नहीं कर पाता है, क्षयोपशम किया है, वह प्राप्त करता है। (३) जिस जीव ने दर्शनावरणीय (दर्शनमोहनीय) कर्म का क्षयोपशम नहीं किया, वह शुद्ध बोधिलाभ नहीं कर पाता, जिसने क्षयोपशम किया है, वह पाता है। (३) जिसने धर्मान्तरायिक कर्मों (चारित्र अंगीकाररूप धर्म में अन्तराय डालने वाले कर्मों अर्थात् वीर्यान्तराय एवं विविध चारित्रमोहनीय कर्मों का क्षयोपशम किया है, वह केवली आदि से सुने बिना ही मुण्डित होकर आगारवास से अनगारधर्म में प्रव्रजित हो जाता है, जिसने इनका क्षयोपशम नहीं किया, वह प्रव्रजित नहीं हो पाता। (४) जिसने चारित्रावरणीय (वेद नोकषाय मोहनीय) कर्म का क्षयोपशम किया है, वह केवली आदि से बिना सुने ही शुद्ध ब्रह्मचर्यवास धारण कर सकता है, जिसने इस कर्म का क्षयोपशम नहीं किया है, वह ब्रह्मचर्यवास धारण नहीं कर पाता। (५) जिसने केवली आदि से सुने बिना ही यतनावरणीय (चारित्र-विशेषविषयक वीर्यान्तरायरूप) कर्म क्षयोपशम किया हुआ है तो वह शुद्ध संयम से संयमित होता है, इस कर्म का क्षयोपशम न किया हो तो वह केवली आदि से सुने बिना शुद्ध संयम द्वारा स्वयं को संयमित नहीं कर पाता। (६) जिसने अध्यवसायावरणीय कर्मों (भाव-चारित्रावरणीय कर्मों) का क्षयोपशम किया है, वह केवली आदि से सुने बिना ही शुद्ध संवर से संवृत हो सकता है, इसके विपरीत जिसने इन कर्मों का क्षयोपशम नहीं किया है, वह केवली आदि से सुने बिना शुद्ध संवर से संवृत नहीं हो सकता। (७-१0) इसी प्रकार जिसने आभिनिबोधिकज्ञानावरणीय, श्रुतज्ञानावरणीय, अवधिज्ञानावरणीय या मनःपर्यायज्ञानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम किया है, वह साधक केवली आदि से
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