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________________ * मोक्ष की अवश्यम्भाविता का मूल : केवलज्ञान : क्या और कैसे-कैसे? * २५१ * प्रत्येकबुद्ध केवली किसी एक वस्तु को देखकर उस पर अनुप्रेक्षण करते-करते प्रतिबुद्ध होते हैं और दीक्षित होकर केवलज्ञान प्राप्त करते हैं। जैन इतिहास में ऐसे चार प्रत्येकबुद्ध प्रसिद्ध हैं-(१) नमिराजर्षि, (२) द्विमुखराय, (३) नग्गति, और (४) करकण्डू। ___ नमिराज के शरीर में दाहज्वर का भीषण प्रकोप हुआ। उसे शान्त करने के लिए रानियाँ चन्दन घिसने लगीं। हाथों के हिलने से चूड़ियों की ध्वनि कानों को अप्रिय लगने लगी। उस आवाज को बन्द करने हेतु सभी रानियों ने सौभाग्यचिह्नस्वरूप एक-एक चूड़ी रखी। इससे आवाज बन्द सुनकर नमिराज ने कारण जानना चाहा तो बताया गया-हाथ में एक-एक चूड़ी रखने से आवाज कैसे होती? इसे सुनकर नमिराज प्रबुद्ध हो गये और एकत्वभावना में डुबकी लगाने लगे। फिर नौकर-चाकर, धन-वैभव, स्वजन-पुरजन. आदि सभी समूह को परभाव समझकर छोड़ दिया। एकाकी बनकर स्व-भाव में रमण करने लगे। संयमी बनकर तप-संयम से आत्मा को भावित करके चार घातिकर्म क्षय किये, केवलज्ञान-केवलदर्शन प्राप्त किया, वाद में सर्वकर्ममुक्त हुए। __ द्विमुखराय ने एक बार एक बारहठ जी की प्रेरणा से चित्रशाला बनाई। उसके बीचोंबीच एक अत्यन्त मोहक इन्द्रध्वज स्थापित करवाया। समारोह सम्पन्न होने के बाद इन्द्रध्वज को उखाड़कर एक ओर रख दिया गया। नहीं सँभालने से उस पर मिट्टी जम गई। विरूप-सा लगने लगा। द्विमुखराय एक दिन उस भद्दे गंदे इन्द्रधनुष को देखकर ऊहापोह करने लगे-यह सारी शोभा तो पर-वस्तुओं से है। शरीर अपने आप में सुन्दर नहीं है, उस पर वस्त्राभूषणादि लपेटने से ही सुन्दर दिखता है। मुझे पराई चमक-दमक नहीं चाहिए। इस प्रकार प्रत्येकबुद्ध होकर उन्होंने सुन्दर लगने वाले वस्त्राभूषण उतार दिये। संयम-साधना द्वारा महामुनि द्विमुख केवली बने, मोक्ष प्राप्त किया। .. 'नग्गति राजा ने वन-भ्रमण के समय फल-फूलों से लदे एक आम्र-वृक्ष को देखा। शीघ्र ही उन्होंने हाथ ऊँचा करके उसका एक गुच्छा तोड़ा। पीछे आने वाले सेवकों ने उस आम्र-वृक्ष के सभी फल-फूल-पत्ते तोड़ डाले। वृक्ष को ठूठ-सा हुआ देखा तो ऊहापोह करते-करते जातिस्मरण ज्ञान हो गया। प्रतिबुद्ध होकर स्वयं पंचमुष्टि लोच करके साधु बने, केवलज्ञान प्राप्त हुआ, मोक्ष पहुँचे। · करकण्डू गोसेवा-प्रेमी थे। अपनी गोशाला में एक हृष्ट-पुष्ट वृषभ को देखकर प्रसन्न होते थे। किन्तु काफी समय के बाद एक दिन उसी वृषभ को मरियल-सा देखकर उनका चिन्तन फूटा-वृद्धावस्था, रोग और अशक्ति के कारण कितना परिवर्तन बाह्य शरीर में हो जाता है? इन्हीं विचारों की उधेड़बुन में उन्हें जातिस्मरण ज्ञान हो गया। संयम ग्रहण कर मुनिवेश में वे वन की ओर चल दिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004250
Book TitleKarm Vignan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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