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* मोक्ष की अवश्यम्भाविता का मूल : केवलज्ञान : क्या और कैसे-कैसे? * २४१ *
आदि क्षुद्रं जीवों से भरी पृथ्वी को देखकर, (३) बड़े-बड़े महोरगों (सो) के शरीरों को देखकर, (४) महर्द्धिक, महाद्युतिक, महानुभाव, महायशस्वी, महाबली, महान् सुखी देवों को देखकर, (५) पुरों, ग्रामों, नगरों, खेटों आदि के चौराहों, तिराहों, छोटे-बड़े मार्गों, गलियों, नालियों, श्मशानों, शून्यगृहों, गुफाओं,
शान्तिगृहों, शैलगृहों, उपस्थानगृहों आदि भवनगृहों में दबे हुए बड़े-बड़े विस्मृत प्रायः उत्तराधिकारीरहित तथा नष्टप्राय मार्ग वाले महानिधानों को देखकर। जबकि अवधिज्ञानी अवधिदर्शनी को उत्पन्न होता हुआ अवधिज्ञान-दर्शन इन्हें देकर प्राथमिक क्षणों में ही स्तम्भित हो जाता है। कारण यह है कि अवधिज्ञानी हीन संहनन और हीन सामर्थ्य वाले होते हैं, इस कारण वे उक्त पाँच कारणों में से एक भी कारण उपस्थित होने पर अपने उपयोग से विचलित-विस्मित हो सकते हैं, जबकि केवलज्ञानी के वज्रऋषनाराच संहनन होता है, घोरातिघोर परीषह और उपसर्गों से भी वह चलायमान नहीं होता। फिर जिनका मोहकर्म दसवें गुणस्थान में ही क्षीण हो चुका है, उनके विस्मय, भय, लोभ आदि का कोई कारण शेष नहीं रहता। ऐसे क्षीणमोही परम वीतराग पुरुष के पाँच तो क्या सैकड़ों विघ्न-बाधाएँ भी उपस्थित हो जाएँ, तो भी वे उत्पन्न होते हुए केवलज्ञान-केवलदर्शन को नहीं रोक सकतीं।
केवली पाँच कारणों से परीषहों-उपसर्गों को समभाव से सहते हैं इसी शास्त्र में बताया गया है कि पाँच कारणों से केवली उदयागत परीषहों और उपसर्गों को सम्यक् प्रकार से अविचल भाव से सहते हैं, क्षान्ति रखते हैं, तितिक्षा रखते हैं और उनसे प्रभावित नहीं होते-(१) यह पुरुष निश्चय ही दृप्तचित्त है, (२) विक्षिप्तचित्त है, (३) यह यक्षाविष्ट है, (४) मेरे इस भव में वेदन करने योग्य कर्म उदय में आ रहा है, इसीलिए यह मुझ पर आक्रोश करता है, मुझे गाली देता है, उपहास करता है, मुझे धमकी देता है, मेरी भर्त्सना करता है, मुझे बाँधता, रोकता या छविच्छेद करता है अथवा वधस्थान में ले जाता है, उपद्रुत करता है अथवा वस्त्र, पात्र, कम्बल, पादपोंछन आदि का छेदन, भेदन या अपहरण करता है, (५) मुझे सम्यक् प्रकार से अविचल भाव से परीषहों और उपसर्गों को सहन आदि करते देखकर बहुत-से अन्य छद्मस्थ श्रमण निर्ग्रन्थ • उदयागत परीषहों और उपसर्गों को सम्यक् प्रकार से अविचल भाव से सहेंगे, क्षान्ति और तितिक्षा रखेंगे, उनसे प्रभावित नहीं होंगे।
१. स्थानांगसूत्र, स्था. ५, उ. १, सू. २२, विवेचन सहित (आ. प्र. समिति, ब्यावर) . २. वही, स्था. ५, उ. १, सू. ७३
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