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________________ * मोक्ष की अवश्यम्भाविता का मूल : केवलज्ञान: क्या और कैसे-कैसे ? २३९ * छद्मस्थ (अपूर्ण ज्ञानी) इन्हें नहीं जानता - देखता, किन्तु वह (प्रयत्न करे तो ) केवली या केवली पाक्षिक आदि से सुनकर यह जान - देख सकता है । ' छद्मस्थ और केवली के आचरण में सात बातों का अन्तर 'स्थानांगसूत्र' के अनुसार- सात स्थानों (बातों) से जाना और पहचाना जाता है कि अमुक व्यक्ति छद्मस्थ है और अमुक व्यक्ति केवली है (१) छद्मस्थ चारित्रमोहनीय कर्म के कारण सम्यक्चारित्र का पूर्ण रूप से पालन नहीं कर पाता। इसलिए छद्मस्थ के द्वारा जानते - अजानते कभी न कभी हिंसा हो जाती है, जबकि केवली भगवान के चारित्रमोहनीय कर्म के सर्वथा क्षय हो जाने से वे अहिंसा का पूर्णतया पालन करते हैं, कभी प्राणि हिंसा का विचार तक नहीं करते। (२) छद्मस्थ से कभी न कभी असत्य बोला जा सकता है, जबकि केवली मृषाभाषण से रहित होते हैं। (३) छद्मस्थ से कभी न कभी अदत्तादान का सेवन भी हो जाता है, जबकि केवली अदत्त वस्तु पर अपना स्वामित्व या अधिकार जताकर उसे ग्रहण नहीं करता । (४) छद्मस्थ व्यक्ति शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श इन पाँचों का राग ( आसक्ति) पूर्वक सेवन करता है, जबकि केवली इन पाँचों इन्द्रिय-विषयों का रागपूर्वक आस्वादन नहीं करता । (५) छद्मस्थ अपनी पूजा-प्रतिष्ठा तथा वस्त्रादि द्वारा सत्कार का अनुमोदन करता है, यानी वह अपनी पूजा तथा सत्कारादि से प्रसन्न होता है, जबकि केवली अपनी पूजा-सत्कार आदि का अनुमोदन नहीं करता । (६) छद्मस्थ आधाकर्म आदि दोष से युक्त वस्तु को सावध ( सदोष ) जानता हुआ - कहता हुआ भी उसका सेवन करता है, जबकि केवली सावद्य को सावद्य ( सदोष ) जानता और कहता हुआ, उस वस्तु का भेदन नहीं करता । (७) छद्मस्थ जैसा कहता है, वैसा करता नहीं है, अर्थात् वह कहता कुछ और करता कुछ है, जबकि केवली जैसा कहता है, वैसा करता है। १. केवली अंतकरं वा अंतिम सरीरयं वा, चरम-कम्मं वा चरम-निज्जरं वा जाणति पासति । छउमत्थे णो जाति-पासति । सोच्चा जाणति पासति, पमाणतो वा । - भगवती, श. ५, उ. ४, सू. २६/१-३ तथा २७ २. स्थानांगसूत्र, स्था. ७, सू. २८-२९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004250
Book TitleKarm Vignan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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