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________________ * २१८ * कर्मविज्ञान : भाग ९ * जिन्दगी में भी (अध्यात्म दिशा में अपनी शक्तियों का नियोजन करने हेतु) प्रयाण करें तो शीघ्र ही अमर भवनों (देवलोकों) को प्राप्त कर सकते हैं।" श्वेताम्बिका नगरी के प्रदेशी राजा का जीवन इस तथ्य का ज्वलन्त उदाहरण है। इसी प्रकार भगवान महावीर के शासनकाल में भी अनेक व्यक्ति ऐसे थे, जिन्होंने अपने पूर्व-जीवन में मानव-हत्याएँ की थीं, परन्तु जब उन्होंने अपनी आत्म-शक्तियों का आध्यात्मिक दिशा में मोड़ने का संकल्प किया तो पूर्वकृत पापों का प्रायश्चित्त करके आत्म-शुद्धि की, समभाव और शान्तिपूर्वक तमाम उपसर्गों और कष्टों को सहा, आत्म-शक्तियाँ पूर्ण रूप से जाग्रत हो गईं और वे 'सिद्ध-बुद्ध-मुक्त परमात्मा बन गए। अर्जुन मुनि का ज्वलन्त उदाहरण इसी तथ्य-सत्य का सूचक है। अतः यदि निकाचित रूप से बन्ध न हुआ हो तो पूर्वकृत अशुभ कर्मों को शुभ में परिणत किया जा सकता है, उद्वर्तन किया जा सकता है, संक्रमण भी सजातीय कर्मों का किया जा सकता है तथा स्थिति और रस (अनुभाग) में भी परिवर्तन किया जा सकता है और प्रसन्नचन्द्र राजर्षि की तरह अल्पकाल में ही समस्त पापकर्मों का तीव्र पश्चात्तापरूप आभ्यन्तर तप से क्षय भी किया जा सकता है। हरिकेशबल और चित्त-सम्भूति जीवन से निराश होकर आत्महत्या करने जा रहे थे, उनका पूर्व-जीवन भी दुर्भाग्यग्रस्त नीरस, भौतिक शक्तियुक्त एवं कलुषित-सा था; किन्तु निर्ग्रन्थ मुनिवरों की प्रेरणा से उन्होंने साधु जीवन अंगीकार करके आध्यात्मिक दिशा में अपनी समस्त शक्तियाँ नियोजित कर ली। अतः शक्तियों का होना कोई बड़ी बात नहीं है। शक्ति तो सभी प्रकार के मनुष्यों में होती है। क्या अर्जुनमाली, हरिकेशबल चाण्डाल, चाण्डाल-पुत्र चित्त-सम्भूति आदि व्यक्तियों में मुनि जीवन अंगीकार करने से पहले शक्ति नहीं थी? शक्तियाँ थीं, पर वे या तो सोई हुई थी, या विपरीत दिशा में नियोजित थीं। अत: महत्त्वपूर्ण वात है-उन शक्तियों का यथार्थ दिशा-आध्यात्मिक दिशा में नियोजन करना। अगर शक्तियों का नियोजन ठीक दिशा में नहीं होता है तो अनेक समस्याएँ, झंझट, उलझनें, खतरे तथा विपत्तियाँ पैदा हो सकती हैं, पापकर्मों का ही अधिकाधिक बन्ध होता चला जाता है। संसार में जितनी भी हत्याएँ, दंगे, चोरी, डकैती. लूटपाट, ठगी, तस्करी, आतंकवाद, आगजनी, व्यभिचार, बलात्कार आदि १. पच्छावि ते पयाया खिप्पं गच्छंति अमरभवणाई। जेसिं पिओ तवो संजमो य खंति य बंभचेरं च॥ -दशवैकालिकसूत्र. अ. ४, गा. २८ २. देखें-गयप्पसेणीयसुत्तं में प्रदेशी राजा का जीवन-वृत्त २. देखें--अन्तकृद्दशासूत्र में अर्जुन मालाकार का जीवन-वृत्त ४. (क) देखें-अन्तकृद्दशासूत्र में अर्जुन मालाकार का जीवन-वृत्त । (ख) देखें-उत्तराध्ययनसूत्र, अ. १२ और १३ में हरिकेशवल और चित्त-सम्भूति का जीवन-वृत्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004250
Book TitleKarm Vignan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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