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* परमात्मभाव का मूलाधार : अनन्त शक्ति की अभिव्यक्ति * २१७ *
पुरुषार्थ से घबराने वाले लोग आत्म-शक्तियों को कैसे जगा सकते हैं ? : एक चिन्तन
प्रथम तो आत्मा में सुषुप्त शक्तियों को जाग्रत, अभिव्यक्त और अनावृत करना है। अधिकांश साधक, विशेषतः मोक्षाकांक्षी साधक भी आत्म-शक्तियों को जगाने में प्रतिबन्धक बद्धकर्मों, कर्मास्रवों तथा विघ्नों, परीषहों, कष्टों और उपसर्गों से घबराकर इन्हें जगाने से ही कतराते हैं। वे कोई न कोई सस्ता, सुख-सुविधाजनक नुस्खा खोजते हैं, जिसमें कुछ करना- धरना न पड़े, इन्द्रिय, तन और मन की फरमाइशों-माँगों की पूर्ति में जरा भी आँच न आए। 'हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा हो जाए' वाली कहावत के अनुसार वे कुछ भी उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पराक्रम, तप-संयम में पुरुषार्थ नहीं रना चाह भला, यह कैसे हो सकता है ? आत्म-शक्तियों को जगाना भी चाहैं और शक्तियों में अवरोध उत्पन्न करने वाले पर-पदार्थों, पर भावों ओर विभावों प्रवाह में भी बहना चाहते हैं। भवभ्रमण का रोग भी मिटाना चाहते हैं और उसके लिए कड़वी दवा, उपचार, पथ्यपालन तथा वीतराग महापुरुष द्वारा दिये गए तप, संयम आदि धर्माचरण-विधि के निर्देशानुसार चलना भी नहीं चाहते। यह कैसे सम्भव है ? इस प्रकार आत्म-शक्तिरूप स्वभाव में एकाग्र एवं स्थिर होने के पुरुषार्थ से कतराने वाले लोगों की आत्म-शक्तियाँ सुषुप्त एवं प्रच्छन्न रहती हैं। ऐसे व्यक्ति बुझी हुई आग की भाँति निष्क्रिय जीवन जीते हैं। वे विविध विकल्पजाल में, असमंजस में, संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय (अनिश्चय) की स्थिति में पड़कर आत्म-शक्तियों को जाग्रत नहीं कर पाते।
पहले विपरीत दिशा में नियोजित शक्तियों को अध्यात्म दिशा में कैसे नियोजित कर सकते हैं ? : एक समाधान
कई लोग इस शंका से ग्रस्त रहते हैं कि हमने पूर्वकाल में या इसी जीवन के पूर्वार्द्ध में, अपनी शक्तियों का बहुत दुरुपयोग, अपव्यय, निरर्थक प्रयोग किया है, हिंसा, झूठ-फरेब, बेईमानी, व्यभिचार, अनाचार, दुर्व्यसन आदि में अपनी विविध शक्तियाँ लगायी हैं, अतः अब हम उन विकृत एवं दुष्कर्मबन्धकृत शक्तियों को आध्यात्मिक दिशा में कैसे लगा सकते हैं? हमने अ िकांश जिन्दगी तो अपनी शक्तियों को आध्यात्मिक दिशा में न लगाकर अर्थात् कर्मनिरोध-कर्मक्षय (संवर और निर्जरा) की दिशा में न लगाकर भौतिक दिशा में, सुखोपभोग में, ऐश-आराम में, धन कमाने और साधन जुटाने में व्यतीत की है, अब बुढ़ापे में हम क्या कर सकते हैं, कैसे अपनी शक्तियों को आध्यात्मिक दिशा में मोड़ सकते हैं ? भगवान महावीर ने बुढ़ापे में निराश व्यक्तियों को आशास्पद संदेश देते हुए कहा है- "जिन्हें तप, संयम, क्षमा ( क्षान्ति या सहिष्णुता ) एवं ब्रह्मचर्य प्रिय हैं, वे अपनी पिछली
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