SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 357
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * परमात्मभाव का मूलाधार : अनन्त शक्ति की अभिव्यक्ति * २०३ * हमारे पूर्वज महापुरुषों ने सुषुप्त आध्यात्मिक शक्तियों को कैसे जाग्रत किया था ? हमारे पूर्वज महापुरुषों ने तो अपने अन्तरात्मा में छिपी हुई-दबी हुई गुप्त आध्यात्मिक शक्तियों का पता शुक्लध्यान के द्वारा लगा लिया था और सचमुच वे अपने भीतर सुषुप्त अनन्त आत्मिक-शक्तियों का प्रकटीकरण करके सामान्य आत्मा से अनन्त शक्तिमान परमात्मा बन सके थे। उनके शिष्य-प्रशिष्यों ने भी उसी पद्धति का अनुसरण करके अपनी अन्तरात्मा में सुषुप्त अनन्त आत्मिक-शक्तियों को अभिव्यक्त एवं जाग्रत करके वे भी अनन्त (परिपूर्ण) शक्तिमान् परमात्मा बन गए थे। अनन्त-अनन्त आत्माएँ इन अनन्त आत्मिक-शक्तियों से परिपूर्ण होकर परमात्मा बनी हैं। उनके अपने परीक्षणों और अनुभवों का रहस्य आगमों में अंकित कर दिया है, कहीं धर्मकथानुयोग के माध्यम से तो कहीं चरणकरणानुयोग के माध्यम से तो कहीं द्रव्यानुयोग के माध्यम से और कहीं गणितानुयोग के माध्यम से। उदाहरण के तौर पर हम ‘उत्तराध्ययनसूत्र' में अंकित हरिकेशबल मुनि, चित्त मुनि, अनाथी मुनि, संयती राजर्षि, कपिलकेवली आदि के चरित्र प्रस्तुत कर सकते हैं। इन्होंने अपने जीवन में प्रतिकूल परिस्थितियों से, कर्मबन्धकारक संयोगों से जूझते हुए परीषह-विजय, उपसर्ग-सहन, मोह-ममत्ववर्द्धक वातावरण में परिवर्तन, बाह्याभ्यन्तर तप, अनुप्रेक्षा, संयम, अहिंसा, अभय, क्षमा, सन्तोष आदि का आत्म-शक्तिवर्द्धक पथ अंगीकार किया था। इस प्रकार उन्होंने विविध माध्यमों से अपनी अनन्त आत्म-शक्ति उपलब्ध और अभिव्यक्त कर ली थी। हम प्रायः उन्हीं पढ़ी-पढ़ाई या सुनी-सुनाई बातों के आधार से ऐसी प्रतीति कर सकते हैं कि पूर्वज महर्षियों द्वारा बताये गये, उनके द्वारा अनुभूत उपायों से हम भी अपने अन्तर में सुषुप्त, अनभिव्यक्त आत्म-शक्तियों को अभिव्यक्त कर सकते हैं। उन महापुरुषों ने अपने जीवन-वृत्त से यह भी स्पष्ट बता दिया है कि हमारी उन सुषुप्त आत्म-शक्तियों को जाग्रत या अभिव्यक्त करने में कौन-कौन-से 'आवरण, विघ्न, परीषह, उपसर्ग, कष्ट आदि आ सकते हैं और हमें उन आवरणों, विघ्नों आदि को दूर करने के लिए क्या-क्या कदम उठाने चाहिए ? किस प्रकार से हम अपनी आत्म-शक्तियों को जाग्रत, अभिव्यक्त एवं विकसित करने में सफल हो सकते हैं और किस-किस मोर्चे पर कहाँ-कहाँ, कैसे-कैसे निष्फल हो जाते हैं ? सम्यक्त्व-पराक्रम अध्ययन में आत्म-शक्ति-संवर्द्धन, जागरण का मार्गदर्शन 'उत्तराध्ययनसूत्र' का 'सम्यक्त्व-पराक्रम' नामक सारे अध्ययन में इन्हीं आध्यात्मिक शक्तियों को विविध माध्यमों से जगाने का तथा उनके विविध १. देखें-उत्तराध्ययनसूत्र का १२वाँ, १३वाँ, २0वाँ, १८वाँ, ८वाँ अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004250
Book TitleKarm Vignan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy