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________________ ७ परमात्मभाव का मूलाधार : अनन्त शक्ति की अभिव्यक्ति परमात्मा की तरह सामान्य मानवात्मा में भी अनन्त आत्मिक-शक्ति अन्तरायकर्म का सर्वथा क्षय होने से सिद्ध- परमात्मा में अनन्त बलवीर्य (आत्मिक शक्ति) प्रकट होता है । जो अनन्त आत्मिक शक्ति परमात्मा में अभिव्यक्त हो जाती है, वही अनन्त आत्मिक शक्ति सामान्य आत्मा में, मानवात्मा में शक्ति (लब्धि) रूप में पड़ी है, किन्तु उसकी अभिव्यक्ति अन्तराय कर्मों के कारण नहीं हो पाती। आत्मा के स्वभाव का चतुर्थ रूप अनन्त शक्ति है, जिसे जैन - कर्मविज्ञान की भाषा में अनन्त (बल) वीर्य कहते हैं। प्राणियों में सबसे अधिक विकसित चेतना -शक्ति मनुष्य की है। उसकी आत्मा में अनन्त शक्तियों का सागर लहरा रहा है। । परन्तु मानवात्मा में वे अनन्त शक्तियाँ सुषुप्त हैं, जाग्रत नहीं हैं, अनभिव्यक्त हैं, दबी हुई हैं, अभिव्यक्त या उभरी हुई ( प्रस्फुटित ) नहीं हैं। जबकि परमात्मा में वे अनन्त शक्तियाँ जाग्रत हैं, अभिव्यक्त हैं। Jain Education International इन आध्यात्मिक शक्तियों का मूल स्रोत : आत्मा मानवात्मा में अनन्त ज्ञान की शक्ति है, अनन्त दर्शन की शक्ति है, अनन्त चारित्र अथवा अनन्त आत्मिक आनन्द ( अव्याबाध - सुख) की शक्ति है और अनन्त आत्मिक वीरता (आध्यात्मिक भाववीर्य ) की शक्ति है। ये चार प्रकार की शक्तियाँ समस्त आध्यात्मिक शक्तियों की मूल (जड़) हैं। उन समस्त आध्यात्मिक शक्तियों का मूल स्रोत, मूल उद्गम-स्थल या पावर हाउस आत्मा है। आत्मा में से ये शक्तियाँ निकलकर विभिन्न भागों में आवश्यकतानुसार पहुँचती हैं। इनमें भौतिक, बौद्धिक, शारीरिक, वाचिक, मानसिक और आध्यात्मिक आदि सभी प्रकार की शक्तियाँ होती हैं। हैं ये आध्यात्मिक शक्तियों की ही अनेक धाराएँ, जो मनुष्य के शरीर के विभिन्न अंगोपांगों, इन्द्रियों, मन, बुद्धि, हृदय, चित्त आदि अन्तःकरणों तथा दशविध प्राणों में विद्युत् धाराओं के समान पहुँचती हैं। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004250
Book TitleKarm Vignan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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