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* १८६ * कर्मविज्ञान : भाग ९ *
उपस्थित हो जाते हैं। उनमें से मुख्य हैं-आत्म-विस्मृति, अजागृति, प्रमाद, असावधानी, मन और इन्द्रियों का दुरुपयोग तथा दर्शन के साथ राग, द्वेष, मोह, कषाय आदि का जुड़ जाना इत्यादि। इसके परिणामस्वरूप चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन (नेत्रेतर इन्द्रियों द्वारा होने वाला दर्शन), अवधिदर्शन और केवलदर्शन (एकमात्र
आत्म-दर्शन) पर आवरण आ जाता है। दर्शन : क्या है, क्या नहीं ? __ यों तो दर्शन ज्ञान का ही पूर्वरूप है। ज्ञान साकार उपयोग होता है, जबकि दर्शन निराकार। किसी भी वस्तु को देखते ही प्रथम क्षण में 'यह कुछ है' इस प्रकार का निराकार सामान्य ज्ञान होता है, उसे 'दर्शन' कहते हैं और यह अमुक वस्तु है, अमुक नामरूप वाली है, अमुक काम की है, ऐसा विशिष्ट ज्ञान 'ज्ञान' कहलाता है। । दूसरे शब्दों में दर्शन होता है-अभेदात्मक चेतना से और ज्ञान होता हैभेदात्मक चेतना से। जब व्यक्ति किसी वस्तु या व्यक्ति को देखता है, तो अभेद चेतना से ही देखता है। देखते समय उसकी चेतना भेदात्मक नहीं होती। जैसे-किसी व्यक्ति को देखते ही सर्वप्रथम बोध होगा कि 'यह मनुष्य है।' यह है-अभेद चेतना। परन्तु जब उस मनुष्य के अंगोपांग, परिचय आदि के विषय में विशेष जाना जाता है, तब भेदात्मक चेतना होती है। दर्शन और ज्ञान की कार्य-प्रणाली में अन्तर
दर्शन और ज्ञान की कार्य-प्रणाली में भी काफी अन्तर है। ज्ञान का कार्यक्षेत्र विशाल है। पूर्ण ज्ञान या अनन्त ज्ञान जिसे हो जाता है, उसके लिए किसी भी वस्तु का सूक्ष्मातिसूक्ष्म अंश भी अज्ञात नहीं रहता। जब पूर्ण ज्ञानी के लिए सम्पूर्ण वस्तुओं के सूक्ष्म से सूक्ष्म कण भी अज्ञात नहीं रहते, तब पूर्ण दर्शन तो उसमें गतार्थ हो ही जाता है। इसलिए जैनजगत् में 'केवलज्ञानी' या 'केवली' शब्द का प्रयोग ही प्रायः होता है, केवलदर्शनी शब्द का प्रयोग क्वचित् ही होता है। आत्मा के दर्शन-स्वभाव का उपयोग और लाभ ___ वैसे भी जो सम्यग्दृष्टि आत्मार्थी अपूर्ण ज्ञानी (छद्मस्थ) होता है, वह ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय एवं चारित्रमोहनीय कर्म के उदयवश प्रत्येक घटना. वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति के विषय में आत्मा के ज्ञान-स्वभाव या दर्शन-स्वभाव में पूर्णतया स्थिर नहीं रह पाता; वह प्रमाद, विस्मृति एवं अजागृति का शिकार हो जना है। फिर भी वह परभावों एवं कषायादि या रागादि विभावों को हेय मानता है, परभावों का ज्ञाता-द्रष्टा बने रहने का प्रयत्न करता है। साक्षीभाव रखने के लिए
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