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________________ * चतुर्गुणात्मक स्वभाव-स्थितिरूप परमात्मपद-प्राप्ति * १७५ * महाविद्वान् पण्डित जी से न्याय, दर्शन, व्याकरण आदि का अध्ययन कर रहे थे। न्यायशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ जिसे उक्त पण्डित जी पढ़ाना तो दूर रहा, इन्हें दिखाना भी नहीं चाहते थे, एक दिन पण्डित जी किसी कार्यवश बाहर गए हुए थे, दूसरे दिन आने वाले थे। अतः मौका पाकर दोनों मनीषियों ने न्यायशास्त्र का वह ग्रन्थ बहुत नम्रभाव से अनुरोध करके रातभर के लिए पढ़ने हेतु पण्डितानी से माँग लिया। पण्डितानी ने वह ग्रन्थ उन्हें दे दिया। उक्त ग्रन्थ में १,२00 श्लोक थे। अतः यशोविजय जी ने उसके ७00 और विनयविजय जी ने ५00 श्लोक रातभर में कण्ठस्थ कर लिये। प्रातःकाल पण्डित जी के आने से पहले ही जाकर वह ग्रन्थ पण्डितानी को लौटा दिया। दोपहर पण्डित जी के आने पर उन्होंने पण्डित जी से अपने इस अपराध के लिए क्षमा माँगी। पण्डित जी ने जब दोनों को उक्त ग्रन्थ के श्लोक सुनाने को कहा तो दोनों ने क्रमशः ७00 और ५00 श्लोक सुना दिये। सुनकर पण्डित जी की आँखों में हर्षाश्रु उमड़ पड़े। वास्तव में उपाध्याय यशोविजय जी और विनयविजय जी को यह ज्ञानरस इतना उत्कृष्ट और सुखकर लगा कि रातभर में १,२00 श्लोक कण्ठस्थ करने में कोई थकान, कष्ट या निद्रा की अनुभूति नहीं हुई। ज्ञान की, विशेषतः आत्मा के अभिन्न स्वभावरूप ज्ञान कीआत्म-ज्ञान की आनन्दरूपता इसी से सिद्ध होती है। ज्ञान शक्तिरूप है “Knowledge is Power.” कहने वाला पश्चिम का एक महावैज्ञानिक था। अध्यात्मज्ञान पारंगत महर्षि तो ज्ञान-आत्म-ज्ञान को महाशक्ति कहते ही हैं। ज्ञानबल से ही व्यक्ति अपने आप को संयमी, धृतिधर, शान्त, मृदु, तटस्थ, स्व-पर-भेदज्ञान में रत रख सकता है। · भौतिक ज्ञान में भी इतनी शक्ति है कि इसके द्वारा वैज्ञानिक यह शक्य बना रहे हैं कि पानी की एक बूंद को ध्वनि-तरंग से तोड़कर उसमें ऐसी शक्ति व्याप्त • की जाए कि उससे पूरे न्यूयार्क शहर को वर्षभर तक विद्युत् की पर्याप्त पूर्ति हो सके। इसी प्रकार एक ग्लास पानी में इतनी शक्ति पैदा की जा सकती है कि उससे चार पंखों वाली 'क्वीन मेरी' नाम की पच्चीस हजार टन की स्टीमर छह महीने तक लगातार चालू रह सके। टेलीफोन, टेलीविजन, रेडियो, वायरलेस, टेलीपैथी आदि भौतिकविज्ञान की शक्ति के एक से एक बढ़कर चमत्कार हैं। यह सब तो भौतिक ज्ञान की शक्ति का चमत्कार है। आध्यात्मिक ज्ञान की शक्ति का चमत्कार तो उससे कई गुना बढ़कर है। अर्हन्त-परमात्मा और सिद्ध-परमात्मा में तो आध्यात्मिक ज्ञान की अनन्त शक्ति है। इस प्रकार आत्मा से अभिन्न ज्ञान-स्वभाव में पूर्ण श्रद्धा, ज्ञान-स्वभाव की तीव्रतारूप चारित्र गुण, आनन्द (आत्मिक-सुख) और शक्ति का समावेश हो जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004250
Book TitleKarm Vignan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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