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चतुर्गुणात्मक स्वभाव-स्थितिरूप
परमात्मपद-प्राप्ति
सामान्य आत्मा में चतुर्गुणात्मक शुद्ध स्वभाव की
परमात्मा के समान शक्ति तो है, अभिव्यक्ति नहीं निश्चयदृष्टि से समस्त आत्माएँ परमात्मा के समान अनन्त ज्ञान से प्रकाशमान, अनन्त दर्शन से तेजस्वी, अनन्त आनन्द से परिपूर्ण एवं अनन्त आत्म-शक्ति से प्रखर शक्तिमान् हैं और संसारी कर्मबद्ध आत्मा का सर्वकर्ममुक्त होकर अपने पूर्वोक्त स्वभाव (स्वरूप) में सदा के लिए स्थित हो जाना ही मोक्ष है। दूसरे शब्दों में कहें तो-आत्मा के चार मूल गुणात्मक जो स्वभाव हैं, जो आवृत और विकृत हैं, उनका अनावृत' और अविकृत (शुद्ध) हो जाना ही मोक्ष है। इसीलिए 'उपासकाध्ययन' में कहा गया है-“आनन्द, ज्ञान, ऐश्वर्य (आत्मिक गुणों पर प्रभुत्व), वीर्य (आत्म-शक्ति) एवं परम सूक्ष्मता जहाँ आत्यन्तिक रूप से हो, उसे मोक्ष कहा गया है।"२ फलितार्थ यह है कि मोक्ष तभी होता है, आत्मा से परमात्मा तभी बनता है, जब आत्मा के स्वभाव, स्वरूप या ज्ञानादि रूप चार निजी गुण पूर्ण रूप से विकसित, अनावृत और अभिव्यक्त हो जाएँ। आत्मा के मौलिक गुणात्मक स्वभाव के चार प्रकार ये हैं-(१) अनन्त ज्ञान, (२) अनन्त दर्शन, (३) अनन्त आनन्द (आत्मिक सुख), और (४) अनन्त आत्म-शक्ति (बलवीर्य)। मोक्ष-प्राप्त परमात्मा में इन चार गुणात्मक स्वभावों की शक्ति और अभिव्यक्ति दोनों होती हैं, जबकि सांसारिक आत्मा में इस चतुर्गुणात्मक शुद्ध स्वभाव की शक्ति तो होती है, मगर अभिव्यक्ति पूर्ण रूप में नहीं होती।
सामान्य आत्मा और परमात्मा में अनन्त
चतुष्टयात्मक स्वभाव लब्धि में है, उपयोग में नहीं अर्हन्त और सिद्ध-परमात्मा के आध्यात्मिक स्वभाव के विषय में 'चतुर्विंशतिस्तव' पाठ में कहा गया है
-स्याद्वाद मंजरी ८/८६/१
१. स्वरूपावस्थानं हि मोक्षः। २. उपासकाध्ययन १/४२
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