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* १६० * कर्मविज्ञान : भाग ९ *
तीन-चार या सात-आठ भव तक संसार में रहती है, तो भी उसका लक्ष्य बदल जाता है। उसकी दृष्टि बदल जाती है कि शरीरादि अथवा संसार, परभावादि मैं या मेरे नहीं हैं, मैं शुद्ध सच्चिदानन्दघनरूप सिद्ध- परमात्म-स्वभावमयी आत्मा हूँ। मेरा स्वभाव व स्वरूप सिद्ध-परमात्मा के तुल्य 'है।"
पूर्वोक्त सत्य को समझना और हृदयंगम करना सामान्य व्यक्ति को इसलिए कठिन लगता है कि अनादिकाल से आत्मा के शुद्ध स्वरूप को एक क्षण भी रुचिपूर्वक श्रद्धापूर्वक लक्ष्य में नहीं लिया, क्योंकि उसकी आत्मा पर अज्ञान, मोह . या मिथ्यात्व का घना अन्धकार छाया हुआ था । वह पुण्य एवं शरीरादि की शुभ क्रियाओं में (संवर-निर्जरारूप ) धर्म मानता रहा । आत्म-स्वभाव का श्रद्धा और रुचि के साथ अध्ययन करता तो आसानी से वह समझ में आ सकता था । स्वभाव की बात कठिन भी नहीं है। प्रत्येक मानव में आत्म-स्वभाव को समझने और मानने की शक्ति एवं क्षमता है। जैसे- सूर्य का प्रकाश होते ही सघन से सघन अन्धकार मिट जाता है, वैसे ही स्वभाव के सम्यग्ज्ञान का प्रकाश होते ही मिथ्यात्वजनित उदयाश्रित भावकर्म तथा द्रव्यकर्म रुक जाता है। अज्ञानादिरूप सघन अन्धकार मिट जाता है। 'आत्मसिद्धि' में इसी तथ्य को उजागर किया गया है
“कर्मभाव अज्ञान छे, मोक्षभाव निज वास । अन्धकार अज्ञान-सम, नाशे ज्ञान-प्रकाश ॥ "
परभावों से मुक्ति का उल्लास होना चाहिए
अतः यदि परभावों से अपनी मुक्ति की बात सुनकर अन्तर में उल्लास और अन्धकार से मुक्ति पाकर सम्यग्ज्ञान का प्रकाश पाने का आह्लाद हो तो स्वभाव का वस्तुस्वरूप झटपट समझ में आ सकता है। किसान जब बैल को घर से खेत में काम करने के लिए ले जाता है, तब वह अनिच्छा से धीरे-धीरे चलता है और खेत पर पहुँचने में देर लगाता है । किन्तु जब वह खेत के काम से छूटकर घर की ओर वापस लौटता है, तब तेजी से दौड़ता -दौड़ता जाता है, क्योंकि वह जानता है कि अब मुझे खेत के बन्धन से छूटकर घर पहुँचकर चार पहर तक शान्ति से घास खाना और विश्राम करना है । उसका हौसला बढ़ जाता है, इसलिए वह तीव्र गति से चलकर घर पहुँच जाता है।
ज़ब बैल जैसे अल्पमति प्राणी को भी बन्धन से मुक्त होने पर अपने घर की ओर जाने का अतीव आह्लाद होता है, तव जो आत्मा अनादिकाल से स्वभावरूपी
१. (क) 'पानी में मीन पियासी' से भाव ग्रहण. पृ. ४१९-४२० (ख) सर्व जीव छे, सिद्धसम, जे समजे ते थाय । (ग) आत्मसिद्धि, गा. ९८
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- आत्मसिद्धि, गा. १३५
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