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* १२८ * कर्मविज्ञान : भाग ९ *
वाले व्यक्ति नहीं हो सकते, न हुए हैं, न होंगे। यही कारण है कि हरिकेशबल मुनि जैसे तथा चित्त मुनि जैसे चाण्डाल कुलोत्पन्न तथा महर्षि मैतार्य मुनि जैसे भंगी (मेहतर) जाति में उत्पन्न व्यक्तियों ने भी अपनी सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यक्चारित्र और सम्यक्तप की साधना में अप्रमत्तभाव से पुरुषार्थ किया और . सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुए हैं। १,१४१ व्यक्तियों की हत्या करने वाले मालाकारजातीय अर्जुन ने भी भगवान महावीर के चरणों में जाकर प्रतिबोध पाया, मुनि-दीक्षा अंगीकार की, यावज्जीवन बेले-बेले (छ?-छट्ठ) तप करने की प्रतिज्ञा ली. (प्रत्याख्यान किया), पारणे के दिन राजगृहनगर में ही भिक्षा के लिए स्वयं जाने लगे; किन्तु राजगृह-निवासी लोगों ने उनका सत्कार-सम्मान करने के बदले हिंसा-प्रधान या अनादर-प्रधान व्यवहार किया, किन्तु अर्जुन अनगार ने समभावपूर्वक क्षमाभाव से उसे सहन किया, मन से भी किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं की। फलतः इस प्रकार छह महीने तक उक्त परीषह तथा उपसर्ग को सहन करने से वे आठों ही कर्मों को नष्ट करके सिद्ध-बुद्ध-मुक्त परमात्मा बन गये। इस प्रकार के अन्य वैश्य-जातीय, ब्राह्मण-जातीय, क्षत्रिय-जातीय युवक, वृद्ध और (अतिमुक्त जैसे) बालक भी साधना से मुक्त हुए तथा काली, महाकाली जैसी एवं रुक्मिणी, सत्यभामा आदि जैसी राजरानियाँ तथा कई सामान्य नारियाँ भी सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुईं।' जैनधर्म मोक्ष-प्राप्ति में किसी प्रकार के वेश, लिंग, धर्म-सम्प्रदाय, जाति, देश और रूप की रोक नहीं लगाता। जैनदर्शन के अनुसार स्त्री भी मुक्त हो सकती है, पुरुष भी और नपुंसक भी मोक्षगामी हो सकता है। तीर्थंकर भी मुक्त हो सकते हैं, सामान्यकेवली भी और साधारण नर-नारी भी मुक्त हो सकते हैं, चाहे वे साधु-संन्यासी न बने हों, अभी गृहस्थ-वेश में ही हों, मुक्त हो सकते हैं। जैनधर्म के साम्प्रदायिक रूप वाले स्वलिंगी साधु-साध्वी हों अथवा अन्य धर्म-सम्प्रदाय वाले अन्यलिंगी साधु-साध्वी-संन्यासी हों, वे भी मुक्त हो सकते हैं, किन्तु इन सबके मुक्त होने के लिए एक ही शर्त है, वह है-वीतरागता की, कषायों से मुक्ति की, राग-द्वेष-मोह आदि पर विजय की। जिसने भी राग-द्वेष को जीता, मोह को मारा, कषायों को अलविदा किया, वह जैनदृष्टि के अनुसार सिद्ध-मुक्त हो सकता है। जैनधर्म की मान्यता है कि मुक्ति पर किसी का एकाधिकार (Monopoly) नहीं है। यहाँ तक कि 'भगवतीसूत्र' में कोणिक राजा के उदायी
और भूतानन्द नामक गजराज के विषय में भी मोक्षगमन का कथन किया है कि वे दोनों प्रथम नरक में उत्पन्न होकर वहाँ से आयुष्य पूर्ण कर महाविदेह क्षेत्र में मनुष्य-जन्म पाकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होंगे।
१. 'जैनतत्त्वकलिका' से भाव ग्रहण, पृ. ९९-१०० २. देखें-भगवतीसूत्र, श. १८, उ. १० में सोमिल ब्राह्मण; भगवतीसूत्र श. १२, उ. १ में
शंख-श्रमणोपासक वृत्तान्त जो भविष्य में सिद्ध-बुद्ध होंगे।
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