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* विदेह मुक्त सिद्ध- परमात्मा: स्वरूप, प्राप्ति, उपाय * ११९*
को मोक्ष में अक्षय, अव्यय, अव्याबाध, अनुपमेय, अनिर्वचनीय एवं शाश्वत सुख प्राप्त होता है।' 'उत्तराध्ययनसूत्र' में भी इसका समर्थन किया गया है।
परिपूर्ण सर्वकर्ममुक्त आत्माओं के पूर्ण आध्यात्मिक विकास का क्रम ऐसा ही क्यों ?
'श्रमणसूत्र' में निर्ग्रन्थ-प्रवचन ( सम्यग्ज्ञान - दर्शन - चारित्र धर्म) की महिमा बताकर अन्त में मुक्तात्मा के परिपूर्ण आध्यात्मिक विकास के क्रम का निरूपण किया गया है–‘“इत्थंठिआ जीवा सिज्झति । - इस पूर्वोक्त धर्म में स्थित जीव, अर्थात् इस निर्ग्रन्थ प्रवचनोक्त मार्ग द्वारा ज्ञानादि रत्नत्रय की प्राणप्रण से साधना करने वाले जीव (मानव) सिद्ध हो जाते हैं। इसका फलितार्थ यह हुआ कि इस प्रवचनोक्त मार्ग द्वारा रत्नत्रय की साधना करने वाले के आत्म- गुणों का अनन्त रूप से परिपूर्ण विकास हो जाता है। अनन्त आत्म- गुणों का परिपूर्ण विकास इन ज्ञानादि गुणों की अनन्तता में है, पहले नहीं । जैनदर्शन अपूर्ण अवस्था को संसार ही कहता है, सिद्धत्व या मोक्ष नहीं। जब तक ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य (शक्ति), सत्य और सुख अनन्त न हो, किं बहुना, प्रत्येक गुण अनन्त न हो, तब तक वह सिद्धि या मुक्ति स्वीकार नहीं करता। और वह अनन्त आत्म- गुणों की पूर्णता अपनी साधना द्वारा ही प्राप्त होती है, किसी दूसरे के देने से नहीं । इसलिए 'सिज्यंति' (सिद्ध होते हैं- परिनिष्ठितार्थ होते हैं) पद का प्रयोग सर्वप्रथम किया गया है।
इसके पश्चात् पद है - बुज्झति (बुद्ध = केवलज्ञानी अनन्त ज्ञानी हो जाते हैं)। प्रश्न है- आध्यात्मिक विकास-क्रम स्वरूप चौदह गुणस्थानों में, अनन्त ज्ञानादि तो तेरहवें गुणस्थान में ही प्राप्त हो जाते हैं, सिद्धत्व अवस्था तो इनके पश्चात् चौदहवें गुणस्थान में प्राप्त होती है । अतः सिज्झति के बाद बुज्झति कहने का क्या अर्थ है ? विकास क्रम के अनुसार - 'बुज्झति' का प्रयोग 'सिज्यंति' से पहले होना · चाहिए था। इसका समाधान यह है कि केवलज्ञान तो तेरहवें गुणस्थान में ही हो जाता है, यह सत्य है, अतः विकास क्रम के अनुसार बुद्धत्व का क्रम पहले और सिद्धत्व का बाद में होना चाहिए, किन्तु सिद्ध हो जाने के बाद भी बुद्धत्व बना रहता है। वैशेषिक दर्शनानुसार - ' मोक्ष में ज्ञान नष्ट हो जाता है', इस विपरीत मान्यता का खण्डन करके 'मोक्ष में ज्ञान बना रहता है'; इस तथ्य को अभिव्यक्त करने हेतु सिद्ध के बाद बुद्धत्त्व का क्रम रखा है !
ज्ञान आत्मा का निज गुण है, उसका उच्छेद मोक्ष प्राप्त आत्मा में हो जाये तो सर्वथा ज्ञानहीन जड़ पत्थर - सी होकर आत्मा क्या करेगी? दूसरी बात - आत्मा
१. औपपातिकसूत्र, सिद्धाधिकार, गा. १३-१९
२. उत्तराध्ययन, अ. २३, गा. ८१
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