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________________ ४ जैनदृष्टि से सर्वकर्ममुक्त मोक्ष-प्राप्त विदेह-मुक्त सिद्ध-परमात्मा : स्वरूप, प्राप्ति, उपाय अरिहन्त और सिद्ध दोनों देवाधिदेव परमात्मा कोटि में अरिहन्त और सिद्ध दोनों देवाधिदेव पद में माने गये हैं, क्योंकि केवलज्ञान, केवलदर्शन, अनन्त अव्याबाध - सुख और अनन्त बलवीर्य (आत्म-शक्ति) इन चारों आत्मा की पूर्णता के गुणों में किसी प्रकार की भिन्नता नहीं है। दोनों ही अनन्त गुणों के धारक हैं। अतः ज्ञान की समानता और चार घातिकर्मों के अभाव की तुल्यता होने से अरिहन्त भगवान और सिद्ध भगवान दोनों (देवाधिदेव) देवकोटि गिने गये हैं। 1 अरिहन्त और सिद्ध में मौलिक अन्तर इन दोनों में मौलिक अन्तर यह है कि अरिहन्तदेव शरीरधारी होते हैं, जबकि सिद्ध-परमात्मा अशरीरी होते हैं। अरिहन्तदेव ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय, इन चार घाति (आत्म - गुणघातक) कर्मों से सर्वथा मुक्त होकर केवलज्ञानी (सर्वज्ञ) और केवलदर्शी ( सर्वदर्शी) होते हैं और चार अघातिकर्मों से युक्त होते हैं, जबकि सिद्ध-परमात्मा ज्ञानावरणीय आदि चार घातिकर्मों का तो क्षय करते हैं, चार अघातिकर्मों का भी क्षय करके आठों ही कर्मों से सदा के लिए मुक्त हो जाते हैं। निष्कर्ष यह है कि सिद्ध- परमात्मा सर्वकर्ममुक्त होते हैं, जबकि अरिहन्त भगवान चार घातिकर्म से मुक्त होते हैं। अरिहन्त सदेहमुक्त (जीवन्मुक्त) हैं, जबकि सिद्ध विदेहमुक्त पूर्ण मुक्त हैं। सर्वकर्मों से मुक्त होने की प्रक्रिया सिद्ध-परमात्मा के सर्वकर्मों से मुक्त होने की प्रक्रिया क्या है ? यह भी समझ लेना आवश्यक है। कर्मबन्ध के मुख्य कारण दो हैं - कषाय और योग । कषाय प्रबल होता है, तब कर्म-परमाणु भी आत्मा के साथ तीव्र रूप में अधिक काल तक चिपके रहते हैं और तीव्र फल देते हैं। कषाय के मन्द होते ही कर्मों की स्थिति कम और फलदान शक्ति भी मन्द हो जाती है। जैसे-जैसे कषाय मन्द होता जाता है, वैसे-वैसे निर्जरा (कर्मों का एक देशतः क्षय) भी अधिक होती है और पुण्य का बन्ध भी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004250
Book TitleKarm Vignan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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