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________________ * मोक्ष के निकटवर्ती सोपान * ३५ * यहीं स्थिरता होती है, उससे ऊपर क्यों नहीं? इन सबके उत्तर में ‘औपपातिकसूत्र' में कहा गया है- “यहाँ शरीर छूट जाने के बाद सम्पूर्ण सिद्धि-प्राप्त आत्मा जहाँ जाकर स्थिर हो जाती है, उसे सिद्धालय (सिद्धशिला) कहा जाता है। यह स्थान लोक के किनारे (सीमा) पर आया हुआ है। इससे ऊपर आत्मा के गमन न होने का कारण यह है कि इससे ऊपर अलोक है और अलोक में जाने के लिए गति में सहायक द्रव्य-धर्मास्तिकाय है ही नहीं। इसलिए सिद्ध आत्मा वहीं जाकर अन्तिम विराम लेता है, स्थिर हो जाता है। वहाँ से लौटकर वापस संसार में आना होता ही नहीं है। सिद्धस्थान को पाने के बाद आत्म-दशा कैसी होती है ? उस स्थान को पाने के बाद आत्म-दशा कैसी होती है? इसे बताने के लिये पद्यकार कहते हैं “सादि अनन्त, अनन्त समाधि सुखामां। अनन्त दर्शन-ज्ञान अनन्त सहित जो॥" वहाँ जाने पर आत्मा की पुनः पुनः जन्म लेने की घटमाला छूट जाती है, इसके साथ ही आत्मा का सहज स्वभावरूप ज्ञान भी छूट जाता है, सुख भी छूट जाता है, इसका निराकरण करने के लिए कहा गया है-अनन्त ज्ञान और अनन्त दर्शन जो आत्मा का सहज गुण है, वह गुणी (आत्मा) से कभी पृथक् नहीं हो सकता। इसी तरह सुख-दुःख की क्षणजीवी प्रतीतियों (Feelings) से पर जो अनन्त आत्मिक सुख है, जो सहज आनन्द है, वह भी स्थायी रहता है। इस प्रकार ममता, माया, कर्म, काया छूटी तथा शिव, अचल, अरोगी, अनन्त (शाश्वत) अव्याबाध, अपुनरावृत्ति वाला आत्मा का अपना घर मिला। आत्मा का अपने प्रदेशों सहित अस्तित्व-स्वभाव, ज्ञान-स्वभाव वेदन मिला। इस प्रकार आत्मा अन्तिम सोपान से सच्चिदानन्दस्वरूप सिद्धि-मुक्ति की मंजिल पर पहुँच गया। १. उत्तराध्ययन, अ.३६, गा.२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004250
Book TitleKarm Vignan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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