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________________ * कर्म सिद्धान्त: बिंदु में सिंधु * १९९ * होने पर भी मन और वचन से भोगों को भोगने में समर्थ होने से तब तक क्षीणभोगी नहीं कहा जा सकता, जब तक मन, वचन, काया से स्वाधीन या अस्वाधीन समस्त भोगों का परित्याग न कर दे। अतः भगवतीसूत्रानुसार अधोऽवधिक एवं परमावधिज्ञानी चरमशरीरी या केवली चरमशरीरी को केवलज्ञानादि की उपलब्धि पूर्वोक्त प्रकार से क्षीणभोगी होने पर ही हो सकती है। प्रत्येकबुद्ध, स्वयंबुद्ध, बुद्धबोधितकेवली का स्वरूप प्रत्येकबुद्धकेवली किसी एक वस्तु को देखकर उस पर अनुप्रेक्षण करते-करते प्रतिबुद्ध होते हैं और दीक्षित होकर केवलज्ञान प्राप्त करते हैं। नमिराजर्षि, द्विमुखराय, नग्गति राजा, करकण्डू आदि प्रत्येकबुद्धकेवली हुए हैं। स्वयंबुद्धकेवली हुए हैं - अनाधी मुनि, समुद्रपालित तथा कपिलकेवली आदि । बुद्धबोधितकेवली वे होते हैं, जो किसी ज्ञानी आचार्य का स्वयंबुद्ध आदि द्वारा प्रतिबुद्ध होकर रत्नत्रय की साधना करके केवली होते हैं। हरिकेशबल मुनि इसके उदाहरण हैं। ये तीनों ही केवली महासत्त्वशाली होते हैं। वे प्रायः एकाकी विचरण करते हैं। बड़े-से-बड़े परीषह या उपसर्ग को समभाव से सहते हैं। तीर्थंकर केवली की कुछ विशेषताएँ तीर्थंकर केवली या प्रत्येकबुद्धकेवली, सामान्यकेवली आदि में केवलज्ञान की अपेक्षा से कोई अन्तर नहीं है । किन्तु तीर्थंकर केवली की यह विशेषता है कि पहले उनके तीर्थंकर नामगोत्र कर्म बँध जाता है। अगर उनके द्वारा पहले ही नारकों या देवों में उत्पन्न होने का निकाचित बन्ध हो गया हो तो उन्हें उस गति में अवश्य जाना पड़ता है। तीर्थंकरकेवली में अन्य विशेषताएँ भी होती हैं। तीर्थंकर नामगोत्र कर्म बाँधने के २० बोल (या दिगम्बर-परम्परानुसार १६ कारण भावनाएँ) हैं, उनमें से एक, अनेक या सभी बोलों की विशुद्धभावपूर्वक आराधना करने से तीर्थंकर नामकर्म बाँधते हैं। यह कर्म बाँधते ही उदय में नहीं आता । किन्तु यह निश्चित हो जाता है कि तीर्थंकरभव में वे अवश्य ही केवलज्ञान प्राप्त करके बाद में उस भव की आयु पूर्ण करके ४ अघातिकर्मों का क्षय करके पूर्ण विदेहमुक्त सिद्ध होंगे। तीर्थंकरभव में केवलज्ञान प्राप्त होने पर उनको ३४ अतिशय तथा वाणी के ३५ अतिशय प्राप्त होते हैं। वे चतुर्विध धर्मसंघ (तीर्थ) की स्थापना करते हैं। अरिहन्त तीर्थंकर १८ दोषों से रहित तथा १२ गुणों से युक्त होते हैं। सामान्यकेवली में ये अर्हताएँ या विशेषताएँ नहीं होतीं । वर्तमान में तीर्थकर कहाँ और भविष्य में कौन तीर्थंकर होंगे ? वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र में विहरमान २० तीर्थंकर हैं। भगवान महावीर के संघ में तीर्थंकर नामगोत्र कर्म बाँधने वाले ९ व्यक्ति हुए हैं - ( १ ) मगध- नरेश श्रेणिक राजा, (२) कोणिक- पुत्र उदायी नृप, (३) (भगवान महावीर के गृहस्थपक्षीय) सुपार्श्व, (४) पोट्टिल अनगार, (५) दृढायु, (६) शंख श्रावक, (७) पोक्खली श्रावक, (८) सुलसा श्राविका, (९) रेवती गाथापत्नी, तीर्थंकरकेवली होने के बाद इनका मोक्ष निश्चित है। स्नातक निर्ग्रन्थ क्षीणमोही होने से अवश्य केवली होता है पुलाक से लेकर स्नातक तक ५ प्रकार के निर्ग्रन्थों में 'स्नातक' में यथाख्यातचारित्र होता है तथा पुलाक से लेकर निर्ग्रन्थों तक सयोगी होते हैं, किन्तु स्नातक सयोगी भी होता है, अयोगी भी । क्षीणकषायी (क्षीणमोही) निर्ग्रन्थों तथा स्नातकों को अवश्य ही केवलज्ञान प्राप्त होता है । केवली हो जाने के बाद उनका मोक्ष भी निश्चित है ही । गृहस्थ-वेश में भी केवली और सिद्ध-मुक्त होते हैं। गृहस्थ भी जब 'गृहलिंग सिद्धा' के अनुसार सिद्ध-मुक्त हो सकते हैं, तो गृहस्थ-वेश में केवली क्यों नहीं हो सकते ? मरुदेवी माता गृहस्थ- वेश में ही मोहकर्म को क्षय करने के साथ ही शेष तीन घातिकर्मों का क्षय करके केवलज्ञानी हुई, शेष चार अघातिकर्मों का क्षय करके सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुई । भरतचक्री को शीशमहल में खड़े-खड़े गृहस्थ- वेश में मोहकर्म का सर्वथा क्षय होते ही शेष तीन घातिकर्मों का क्षय हो जाने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004250
Book TitleKarm Vignan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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