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ॐ कषायों और नोकषायों का प्रभाव और निरोध ® ७५ 8
धन-वैभव का अभिमान या प्रदर्शन करने से कर्मबन्ध के सिवाय और कोई लाभ होने वाला नहीं है। अत्यधिक परिग्रह का अभिमान मनुष्य को गिरा देता है।'
मान विजय से संवर और निर्जरा का लाभ मान कषाय पर विजय प्राप्त करने से जीव को क्या लाभ होता है ? इस पर भगवान ने फरमाया-मान विजय से मृदुता (कोमलता-नम्रता) प्राप्त होती है तथा फिर वह मान वेदनीय कर्म का बन्ध नहीं करता तथा जो पूर्वबद्ध कर्म है, उसकी निर्जरा कर डालता है।" अतः मान कषाय पर विजय पाने के लिए मुमुक्षु साधक को बार-बार अभ्यास करना चाहिए।
माया कषाय के अनेक रूप और स्वरूप तीसरा माया कषाय है। कुटिलता, वक्रता, वंचना, ठगी, कपट, छल, दम्भ, कैतव, बहाना, निकृति, शठता, धूर्तता आदि माया के ही अनेक रूप हैं। माया का लक्षण है-बोलना कुछ और करना कुछ। मीठी बात कहकर विश्वास में ले लेना और फिर ठगना माया है। अथवा दम्भ, दिखावा करना, असत्य को सत्य का रूप दे देना भी माया ही है। माया को एक आचार्य ने “असत्य की जननी, शीलवृक्ष को काटने वाली कुल्हाड़ी और अविद्याओं की जन्मभूमि तथा दुर्गति का कारण बताया है।"
__ माया से घोर पापकर्मबन्ध तथा दुर्गति-प्राप्ति मनुष्य अपना तुच्छ स्वार्थसिद्ध करने के लिए माया कपट करता है। मायाबी मनुष्य कई दफा अपना पाप, दोष छिपाने के लिए मायाजाल बिछाता है। मायाबी का हृदय अत्यन्त गूढ़ होता है। वह दाँव-पेच करने में बड़ा ही कुशल होता है। माया के फलस्वरूप मनुष्य बहुधा तिर्यंचगति प्राप्त करता है३ अथवा नरकगामी होता है। . मनुष्यगंति नामकर्म का उपार्जन कर लेने के पश्चात् माया-कपट करने के कारण मनुष्यगति प्राप्त करने के बावजूद स्त्रीत्व-स्त्रीयोनि मिलती है। जैसे१. 'स्थानांगसूत्र वृत्ति, ठा. १०' से भावांश ग्रहण २. माणविजएणं मद्दवं जणयइ, माणवेयणिज्जं कम्मं न बंधइ; पुव्वबद्धं च निज्जरेइ।
-उत्तराध्ययन २९/६८ ३. (क) असूनृतस्य जननी, परशुः शील-शाखिनः।
जन्मभूमिरविद्यानां-माया दुर्गति-कारणम्॥ (ख) माया तैर्यग्योनस्य।
-तत्त्वार्थसूत्र ६/१७ (ग) मायादुर्गतिकारणम्।
• -योगशास्त्र
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