________________
ॐ ७० ॐ कर्मविज्ञान : भाग ७ 8
और सिद्धियों की अथवा किसी भी वस्तु के लोभ की प्राप्ति का अभिमान करने पर भविष्य में हजार बार किसी से माँगने या कितना ही परिश्रम करने पर उस वस्तु का लाभ नहीं मिलता। इस प्रकार पूर्व पुण्योदय के फलस्वरूप प्राप्त किसी भी वस्तु का मद करने पर वह वस्तु भविष्य में (भावी जन्म में) नहीं मिलती, बल्कि उससे विपरीत, हीन वस्तु मिलती है। यह मान कषाय के पापकर्म की भयंकर सजा है।' मान कषाय की उत्पत्ति में निमित्त कारण ___ मान कषाय की उत्पत्ति में निमित्त कारण मुख्यतया ये ८ मद बताये हैं(१) जातिमद, (२) कुलमद, (३) बलमद, (४) रूपमद, (५) पमद, (६) लाभमद, (७) श्रुत (ज्ञान) मद, और (८) ऐश्वर्यमद (धन, सत्ता, वैभव, पद, अधिकार आदि का अहंकार)२ जात्यभिमान से नीच गोत्र का बन्ध __ शास्त्र-प्रसिद्ध हरिकेशबल नामक तपस्वी मुनिराज पूर्व-जन्म में मथुरा निवासी सोमदेव नामक राजपुरोहित थे। राजर्षि शंखमुनिराज से उन्होंने वैराग्य का उपदेश पाकर मुनि दीक्षा अंगीकार की। परन्तु साधु बनने के बाद स्वभावतः उच्चगोत्रीय बन जाता है, इसीलिए भारतीय संस्कृति में साधु-सन्तों की जाति-पाँति नहीं पूछी जाती। कहा भी है
“जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान॥". परन्त इसके विपरीत सोमदेव मनि बात-बात में अपनी भतपूर्व ब्राह्मण जाति का अभिमान और बखान किया करते थे। फलतः उन्होंने नीच गोत्रकर्म का बन्ध कर लिया। जिसके फलस्वरूप स्वर्ग से च्युत होकर उन्होंने गंगा नदी के किनारे बलकोट नामक चाण्डाल की पत्नी गौरी की कुक्षि से जन्म लिया। वहाँ संस्कार और वातावरण सभी निम्न स्तर के मिले।
किन्तु पूर्व (मुनि) जीवन में की हुई तप-संयम की साधना के फलस्वरूप उन्हें किसी उत्तम संयमी साधु का सुयोग मिला। उनके प्रतिबोध से दीक्षित होकर आत्म-ज्ञान, संयम, तपश्चर्या में पुरुषार्थ किया और समस्त कर्मों का सर्वथा क्षय करके वे (हरिकेशबल मुनि) सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुए।३ १. 'पाप की सजा भारी, भा. २' से भावांश ग्रहण २. स्थानांगसूत्र, स्था. ८ ३. देखें-उत्तराध्ययनसूत्र, अ. १२ वृत्ति में
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org