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ॐ ५२ ® कर्मविज्ञान : भाग ७ ॐ
अपमानजनक शब्द कह दिये। उससे मन में गुस्सा आ गया, परन्तु वहाँ किसी धर्मगुरु या व्रती धर्मनिष्ठ श्रावक ने उसे युक्ति से एवं तत्त्वज्ञानपूर्वक समझाया, तो उसका क्रोध दब गया या मंद हो गया। अब उसके मन में थोड़ी-सी कचकचाहट है, मगर उग्रता नहीं है। इसका अर्थ यह है कि अधिक रस वाले, क्रोध मोहनीय कर्म का विपाकोदय चला और वे मन्द रस वाले कर्म उसमें शामिल हो गये। इसलिए सिर्फ प्रदेशोदय से ही वे भोगे गये, उनका विपाकोदय स्थगित हो गया। इसी प्रकार अधिक रस वाले लोभ मोहनीय कर्मों का मन्द रस वाले में स्तिवुक-संक्रमण करने से उनका विपाकोदय दब गया, उक्त मंद रस वाले के साथ प्रदेशोदय से वहं कर्म भोगा गया। उदय-अप्राप्त कर्म के विपाकोदय को रोकने का ही नाम उदय को रोकना है, अर्थात् कषाय को जाग्रत होता-उग्र रूप लेता रोकना है। फिर भले ही प्रदेशोदय के रूप में वह उदय में आये, उसमें कोई खतरा नहीं है।' कुछ अनुप्रेक्षाओं, भावनाओं से कषाय कर्मों का निरोध सम्भव ____ निष्कर्ष यह है कि क्रोधादि कषाय, नोकषाय आदि मोहनीय कर्म के उदय को कैसे निष्फल करना, सफल न होने देना तथा उदय में नहीं आये हुए कषाय कर्मों के उदय = विपाकोदय को कैसे रोक देना? इस विषय में चाबीरूप कुछ भावनाएँअनुप्रेक्षाएँ हैं, जिन्हें अन्तःकरण में स्फुरायमाण रखने से प्रत्येक कषाय और नोकषाय निष्फल किये जा सकते हैं और नये आते हुए कषायों-नोकषायों के उदय (विपाकोदय) को रोका जा सकता है। मूल चिन्तन यह है कि दूसरा कोई अहंकार, क्रोध, स्वार्थ (लोभ) आदि का प्रयोग अपमान, आक्रोश, ताड़न-तर्जन, ठगी आदि के रूप में करता हो, उस समय यदि प्रतिक्रोध, प्रतिआक्रोश, प्रत्यपमान आदि किया जाये तो उसमें अपनी आत्मा का अधिक बिगड़ने वाला है, वैर-परम्परा बढ़ने का भी खतरा है, अपने धर्म से भ्रष्ट-च्युत होने की भी संभावना है। दूसरों के प्रति क्रोधादि करके अपने अन्तर को मत बिगाड़ो
क्रोधादि कषायों को रोकने का सरल उपाय यह भी है कि जब कोई तेरा अपमान करता है तो तू क्रोध करने लग जाता है अथवा जब कोई तेरे से छोटा या निर्धन व्यक्ति तेरी अवज्ञा करता है तो तेरा अहंकार भड़कने को उद्यत होता है, जब कोई तेरे साथ झूठ-फरेब या ठगी करता है तो उससे बदला लेने के लिए तू भी ठगी या झूठ-फरेब करने को उद्यत होता है अथवा तेरे किसी स्वार्थ का हनन होता है तो तू उससे स्वार्थसिद्धि का दाव खेलने को तैयार होता है, दूसरे की
१. 'दिव्यदर्शन', दि. ८-९-९० तथा दि. १५-९-९० के अंक से भाव ग्रहण २. वही, दि. १५-९-९० के अंक से भाव ग्रहण
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