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________________ ४८० कर्मविज्ञान : भाग ७ सम्यदृष्टि द्वारा संवरपूर्वक अविपाक निर्जरा ही शीघ्र मोक्ष की कारण अतएव यह स्पष्ट है कि सम्यग्दृष्टि द्वारा ज्ञानपूर्वक एवं संवरपूर्वक की जाने - वाली अविपाक निर्जरा शीघ्र मोक्ष की कारण है, सविपाक निर्जरा, फिर भले ही वह सम्यग्दृष्टि द्वारा संवरपूर्वक की गई हो, परम्परा से कदाचित् मोक्ष की कारण हो सकती हो, परन्तु शीघ्र मोक्ष की कारण नहीं हो सकती, जब भी वह शीघ्र मोक्ष की कारण होगी, तप, संयम और चारित्रपूर्वक होगी और ऐसी स्थिति में वह सविपाक न रहकर अविपाक निर्जरा में परिणत हो जाएगी। यही कारण है कि दिगम्बर परम्परा के मूर्धन्य ग्रन्थों में संवरयुक्त अविपाक निर्जरा को ही शीघ्र मोक्ष-प्राप्ति में अभीष्ट माना गया है, अतः मोक्ष का शुद्ध और प्राप्ति का अनन्तर मार्ग अविपाक निर्जरा है। सकामनिर्जरा और मोक्ष में कार्य कारणभाव सम्बन्ध शीघ्र मोक्ष प्राप्ति का मार्ग संवरपूर्वक अविपाक निर्जरा है, सविपाक निर्जरा. नहीं, इसे यथार्थरूप से समझने के लिये हमें निर्जरा ( सकामनिर्जरा) और मोक्ष के सम्बन्ध को समझ लेना चाहिए। ( सकाम ) निर्जरा और मोक्ष में कार्य-कारणभाव सम्बन्ध माना गया है। निर्जरा कारण है और मोक्ष उसका कार्य है। कारण के अभाव में कार्य नहीं हो सकता। जब भी मोक्षरूप कार्य होगा, तब पहले सकामनिर्जरारूप कारण होना अनिवार्य है । अतः सकामनिर्जरारूप कारण के बिना मोक्षरूप कार्य भी नहीं हो सकता । निर्जरा है - आत्मसम्बद्ध कर्मों का एक देश से ( अंशतः ) दूर होते जाना और मोक्ष है - कर्मों का सर्वतोभावेन सर्वथा आत्मा से दूर हो जाना। अतः धीरे-धीरे ( सकाम ) निर्जरा ही, मोक्षरूप में परिवर्तित हो जाती है । दूसरे शब्दों में कहें तो - एक-एक आत्म-प्रदेश के अंश अंश रूप से क्रमिक कर्मक्षय होना निर्जरा है और जब सभी आत्म-प्रदेशों के समस्त कर्मों का क्षय हो जाता है, तब वही मोक्ष है। निर्जरा ( सकामनिर्जरा शुद्ध निर्जरा) और (सर्वकर्मक्षयरूप) मोक्ष में कोई विशेष अन्तर नहीं है। उक्त निर्जरा का अन्तिम परिपाक ही मोक्ष है और मोक्ष का प्रारम्भ ही निर्जरा है । मुमुक्षु आत्मार्थी साधक के लिए जितना महत्त्व मोक्ष का है, उतना ही सम्यग्दर्शन एवं तप-संवर से युक्त निर्जरा का है । पूर्वोक्त निर्जरा के अभाव में मोक्ष नहीं और मोक्ष के अभाव में उक्त निर्जरा नहीं । जहाँ एक का अस्तित्व है, वहाँ दूसरे का अस्तित्व स्वतः सिद्ध है । ' = पूर्वोक्त अविपाक निर्जरा द्वारा शीघ्र ही कदाचित् उसी भव में मोक्ष संभव अतः इस सन्दर्भ में सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि कौन-सी निर्जरा शीघ्र मोक्ष प्राप्ति की कारण है? या मोक्ष का अंग है? पहले हम बता चुके हैं कि सम्यक्संवर १. 'अध्यात्म प्रवचन' के आधार पर, पृ. ९८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004248
Book TitleKarm Vignan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages697
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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