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________________ *. स्वाध्याय और ध्यान द्वारा कर्मों से शीघ्र मुक्ति ४०५ प्रशस्तध्यान के लिए अप्रशस्तध्यान के स्वरूपादि को जानना आवश्यक प्रशस्तध्यानों के स्वरूप को समझने और हृदयंगम करने से पूर्व अप्रशस्तध्यान के दोनों प्रकारों के स्वरूप आदि को समझ लेना आवश्यक है। आर्त्तध्यान का अर्थ आर्त्तध्यान का अर्थ है - पीड़ा, व्यथा, चिन्ता, शोक, दुःख आदि से सम्बन्धित एकाग्रतापूर्वक चिन्तन । जब मन में दुःख, दैन्य, व्याधि, मानसिक कुण्ठा, तनाव, रोग आदि से व्याकुलता, प्रिय वस्तु या व्यक्ति के वियोग और अप्रिय वस्तु या व्यक्ति के संयोग से चिन्ता - शोक आदि के विचार बार - बार मन में उठते हैं, मन उनमें ही डूब जता है तब आर्त्तध्यान होता है। आर्त्तध्यान की उत्पत्ति के चार कारण इस प्रकार के आर्त्तध्यान होने के चार कारण बताये गये हैं - ( १ ) अमनोज्ञ सम्प्रयोग- अप्रिय, अनचाही, अनिष्ट वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति का संयोग होने पर, (२) मनोज्ञ सम्प्रयोग- मनोज्ञ, मनचाही, प्रिय या अभीष्ट वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति का वियोग होने पर, (३) आतंक सम्प्रयोग- आतंक का अर्थ - रोग, बीमारी, शारीरिक-मानसिक व्याधि या उपद्रव । आतंक का संयोग उपस्थित होने पर, (४) परिजुषित ( उपलब्ध या सेवित) कामभोग सम्प्रयोग- जो कामभोग आदि की सामग्री उपलब्ध हुई है, उसकी सुरक्षा की तथा उनको प्राप्त करने की चिन्ता तथा भविष्य के लिए भोगसुखों का निदान करने से । इन चार कारणों से आर्त्तध्यान पैदा होता है। आर्त्तध्यान के चार लक्षण आर्त्तध्यान को पहचानने के चार लक्षण ( बाह्य चिह्न) भी बताये गये हैं(१) क्रन्दनता, (२) शोचनता, (३) तिप्पणता ( अश्रुपात), और (४) परिदेवना (हृदयविदारक शोक करना, विलाप करना, विलखना, दुःखविह्वल होकर छाती, माथा आदि कूटना ); इन चार लक्षणों से पहचाना जा सकता है कि यह व्यक्ति आर्त्तध्यान से पीड़ित है । ' १. देखें - स्थानांगसूत्र में आर्त्तध्यान के ४ कारण - (१) अमणुन्न-संपओग, (२) मणुन्न- असंपओग, (३) आयंक-संपओग, (४) परिजुसिय कायभोग-संपओग । असणं झाणस्स चत्तारि लक्खणा प. तं. -कंदणया, सोअणया, तिप्पणया, परिदेवणया य । - स्थानांगसूत्र, स्था. ४, उ. १ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004248
Book TitleKarm Vignan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages697
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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