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* ३९६ ® कर्मविज्ञान : भाग ७ *
स्वाध्यायकर्ता को इन दोषों और अतिचारों से बचना आवश्यक है
स्वाध्यायकर्ता को १0 आकाश सम्बन्धी, १० औदारिक सम्बन्धी, । महाप्रतिपदा, ४ इनसे पूर्व की पूर्णिमाएँ तथा ४ सन्धाएँ, यों कुल ३२ प्रकार के स्वाध्याय दोषों में स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त सूत्रों का स्वाध्याय वाचना के रूप में किये जाने में १४ प्रकार के अतिचारों (दोषों) से बचना चाहिएआगम पढ़ते हुए पाठ आगे-पीछे बोलना, शून्य मन से कई बार बोलना, अक्षरों को छोड़ देना, अधिक अक्षर बोलना, पदरहित, विनयरहित, योगरहित, घोषरहित पढ़ना, योग्यता से अधिक पाठ अयोग्य को देना, सुयोग्य को दुर्भाव से पाठ देना, अकाल में स्वाध्याय करना, काल में स्वाध्याय न करना अस्वाध्याय की स्थिति में स्वाध्याय करना, स्वाध्याय के अवसर पर स्वाध्याय न करना, इन १४. स्वाध्याय दोषों से हर सम्भव बचने पर ही शुद्ध स्वाध्याय हो सकता है। स्वाध्याय में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की शुद्धि भी आवश्यक है। स्वाध्याय और ध्यान दोनों परस्पर सहायक, परन्तु ध्यान बढ़कर
स्वाध्यायतप के पश्चात् ध्यानतप का क्रम इसलिए रखा गया है कि स्वाध्याय में मन को शान्त, एकाग्र करके अन्तरात्मा में निहित राग, द्वेष, काम, क्रोधादि कषाय, आर्त्त-रौद्रध्यान आदि विकारों को जानकर विविध तप, जप, ध्यान, मौन, क्षमा-मार्दवादि धर्मों द्वारा उनसे विरत होने का अभ्यास किया जाता है। यद्यपि स्वाध्याय और ध्यान दोनों से पूर्वसंचित कर्म क्षीण होते हैं। स्वाध्याय में भी एकाग्रता होती है और ध्यान में भी। किन्तु स्वाध्याय में एकाग्रता घनीभूत नहीं होती जबकि ध्यान में वह घनीभूत होती है। स्वाध्याय में वाणी की एकाग्रता होती भी है, नहीं भी होती; इसी तरह काया की एकाग्रता भी कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं भी होती, मन की एकाग्रता भी उसमें अखण्ड नहीं होती; जबकि
पिछले पृष्ठ का शेष(ग) धर्मकथा के भेद-प्रभेदों के वर्णन के लिए देखें-स्थानांग, स्था. ४, उ. २, सू. २८२
की टीका तथा दशवैकालिक, अ. ३ की नियुक्ति, गा. १९७-१९८ १. णाणं पि काले अहिज्जमाणं णिज्जरा-हेऊ भवति। अकाले पुण उवघायकरं कम्मबंधाय भवति॥
-निशीथचूर्णि ११ -शास्त्र का अध्ययन (स्वाध्याय) उचित समय पर किया हुआ ही निर्जरा का हेतु होता है,
अन्यथा वह उपघातकर (हानिकर) तथा कर्मबंध का कारण बन जाता है। २. जं वाइद्धं वच्चामेलियं हीणखरं अच्चक्खरं पयहीणं विणयहीणं जोगहीणं घोसहीणं सुटुदिण्णं
दुझुपडिच्छियं अकाले कओ सज्झाओ, काले न कओ सज्झाओ, असज्झाए, सज्झाइयं; सज्झाए, न सज्झाइयं।
-आवश्यकसूत्र ज्ञान के १४ अतिचार
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