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________________ ॐ स्वाध्याय और ध्यान द्वारा कर्मों से शीघ्र मुक्ति ॐ ३७९ ॐ नरक के सुख-दुःखों का वर्णन ज्ञात होता है, तो कभी स्वाध्याय करते समय जीवन को आमूल परिवर्तन करने वाली शिक्षाएँ मिलती हैं। महात्मा गांधी जी ने लिखा है-“जब कभी मेरे सामने कोई उलझन या समस्या आती है तो मैं गीतामाता की शरण में जाता हूँ।" इसी प्रकार जब किसी व्यक्ति का मन हताश, निराश या उलझनों से भरा हो तब उत्तम ग्रन्थों या शास्त्रों की शरण में जाने से मार्गदर्शन, प्रेरणा एवं उत्साह को जगाने और निराशा को भगाने वाली देशना मिलती है, जिससे सभी उलझनें एवं निराशाएँ मिटकर जीवन में नई आशा, उत्साह, स्फूर्ति एवं साहस का संचार हो जाता है।' स्वाध्याय : अज्ञानमूलक दुःखों के निवारण का उपाय बताता है जीवन में दुःख, दारिद्र्य, रोग, शोक, संकट आदि पूर्वकृत कर्मों के उदय से आते हैं, परन्तु इससे अनभिज्ञ मानव उन दुःखों को मिटाने हेतु पुराने कर्मों का क्षय तथा नये आते हुए कर्मों का निरोध करने के बजाय उन दुःखों आदि के समय या तो चिन्ता, शोक, विलाप, रुदन, उद्विग्नता या आर्तध्यान करता है अथवा भगवान, कर्म, काल तथा अन्य निमित्तों को कोसता है या उन पर दोषारोपण करके अथवा उन निमित्तों को हानि पहुँचाने, उन्हें दुःखित करने हेतु रौद्रध्यान करता है। ऐसा करके अपनी अज्ञानता और मूढ़ता के कारण वह पुराने कर्मों को रो-रोकर भोगता है, नये अशुभ कर्मों को और बाँध लेता है। एक पाश्चात्य विचारक ने ठीक ही कहा है-“Ignorance is the root of all evils.”–अज्ञानता ही समस्त बुराइयों, दुःख-दैन्यों और विपत्तियों की जड़ है। शास्त्रों और तत्त्वज्ञानशिक्षक ग्रन्थों के स्वाध्याय से उन दुःखों के कारणों को जानने के पश्चात् दुःख में से सुख को निकालने और दुःखों से मुक्त होने का अनुभूत उपाय मिल जाता है। इसीलिए भगवान महावीर ने कहा-स्वाध्याय में नियुक्त होने = रत रहने से समस्त दुःखों से मुक्ति मिलती है। “जन्म-जन्मान्तर में संचित किये हुए नाना प्रकार के कर्म स्वाध्याय करने से क्षणभर में क्षीण किये जा सकते हैं। इसलिए सर्वभाव प्रकाशक स्वाध्याय करना चाहिए।" जीवन में जो कुछ भी दुःख-दैन्य के काले-कजरारे बादल उमड़-घुमड़कर आते हैं, उनका मूल कारण अज्ञान है। स्वाध्याय समस्त भावों, हेयोपादेयादि तत्त्वों एवं तथ्यों का यथातथ्यरूप में प्रस्तुत करके उस अज्ञान को नष्ट कर देता है, जिसके कारण मनुष्य दुःख पाता है। अतः स्वाध्याय अज्ञानमूलक दुःखों के निवारण का उपाय बताने वाला पथ-प्रदर्शक है। १. (क) 'जैन आचार : सिद्धान्त और स्वरूप' से भाव ग्रहण (ख) 'आत्मकथा उर्फ सत्य के प्रयोग' (महात्मा गांधी जी) से भाव ग्रहण २. (क) सज्झाए वा निउत्तेण सव्व-दुक्ख-विमोक्खणे। -उत्तराध्ययनसूत्र, अ. २६, गा. १० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004248
Book TitleKarm Vignan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages697
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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