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________________ 8 प्रायश्चित्त : आत्म-शुद्धि का सर्वोत्तम उपाय ® ३३९ * थैक्सी के यहाँ जाकर उनसे क्षमायाचना की और अब तक के विद्वेष का अन्त मैत्रीपूर्ण वार्तालाप से कर दिया। अब उनका उदरशूल आदि सब रोग मिट गया। परिवार के सब लोग उनका यह परिवर्तन देखकर प्रसन्न हुए, सभी उन्हें प्रेम की निगाह से देखने लगे। इस प्रकार की आलोचनापूर्वक प्रायश्चित्त से उनका जीवन आनन्दविभोर हो गया। इसी प्रकार भावना क्षोभ से हुए रोग की मनश्चिकित्सा से मुक्ति की एक घटना संक्षेप में इस प्रकार है। अमेरिका के न्यूजर्सी शहर की एक युवती जब भी चर्च में जाती, उसकी बाहों में जोर की खुजली चलती, जिससे वह बेहाल हो उठती थी। उसके फेमिली डॉक्टर के इलाज से भी उसे फायदा नहीं हुआ। आखिर वह मनोवैज्ञानिक चिकित्सक ‘डॉ. नारमन वीसेंट पीले' के पास गई। उन्हें अपनी व्यथा बताई। पीले' ने पाया कि उस युवती को यह खुजली किसी रोगाणु के संक्रमण से नहीं, किन्तु अपने आप. से भीतर ही भीतर उलझते रहने से उठती है। यह दिमाग में होने वाली उथल-पुथल का परिणाम है। चर्च में आकर ही इस युवती को ऐसी खुजली क्यों परेशान करती है? यह जानने के लिए डॉ. पीले ने रोगिणी को आत्मीयता, स्नेह, और सहानुभूतिपूर्ण स्वर में कुरेदते हुए पूछा-बेटी ! सच-सच कहो ! कोई भी बात छिपाना मत। विश्वास रखो। दुनियाँ में कोई भी ऐसी समस्या नहीं है, जिसका समाधान न हो सके। उनकी सहानुभूति से प्रभावित होकर युवती ने अपना सारा अतीत खोलकर रख दिया। वह किसी बड़ी फर्म में एकाउण्टेंट के पद पर कार्य करती थी और प्रायः गोलमालकर थोड़ा-थोड़ा धन चुराती थी। उसने सोचा था कि वह जल्दी ही चुराये गये पैसों को वापस कर देगी, पर वह ऐसा नहीं कर पाई। इस प्रकार उसके मन में अपराधभावना घर कर गई थी। इसके परिणामस्वरूप चर्च के पवित्र वातावरण में आते ही उसकी रक्तवाहिनी पेशियों में • ऐंठन शुरू हो जाती और भावना उग्र हो जाने से खुजली चलने लगती। . मनःसंस्थान में जमी हुई मनोरोग की जड़ों को पहचानकर डॉ. पीले ने उसे सान्त्वना देकर सलाह दी कि वह फर्म के मालिक के समक्ष अपने अपराध का अथ से इति तक बयान करके मालिक जो कुछ उपालम्भ या दण्ड दे, स्वीकार कर ले तथा चुराई गई रकम को भरना शुरू कर दे। युवती ने अपनी नौकरी छूट जाने का भय बताया तो डॉ. पीले ने ढाढ़स बँधाया कि वहुत सम्भव है, तुम्हारी फर्म का मालिक तुम्हारी ईमानदारी और सचाई से प्रभावित होकर तुम्हें नौकरी से न हटाये। पर, मान लो, वह तुम्हें नौकरी से भी हटा दे तो तुम्हें अन्यत्र नौकरी मिल सकती है। नौकरी खो देने से उतनी हानि नहीं होगी, जितनी कि अपनी आत्मा और नैतिकता के आदर्श को खो देने से हो रही है।'' युवती के हृदय में मनश्चिकित्सक की बात अँच गई। उसने अपनी फर्म के मालिक के सामने सारी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004248
Book TitleKarm Vignan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages697
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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