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________________ ॐ २९२ कर्मविज्ञान : भाग ७ ॐ इनका आचरण करता है-स्थूलशरीर। पंचेन्द्रिय-विषयों की अभिव्यक्ति होती हैस्थूलशरीर में। विषय-चिन्तन राग-द्वेष आदि करता है या विषयों को ग्रहण करने की प्रेरणा करता है-मन। किन्तु स्थूलशरीर द्वारा विषयग्रहण होने के कारण उनका दण्ड (कर्मफल के रूप में) भोगना पड़ता है स्थूलशरीर को ही। स्थूलशरीर के द्वारा कषाययुक्त साम्परायिक क्रियाएँ होती हैं, उनसे सूक्ष्म (कर्म) शरीर को बल मिलता है। सूक्ष्मशरीर (कर्मशरीर) स्थूलशरीर से ऐसी-ऐसी अशुभ प्रवृत्ति करवाता है, जिससे स्वयं (सूक्ष्मशरीर) को शक्ति प्राप्त हो सके। जिन कर्मक्षयकारक प्रवृत्तियों से सूक्ष्मशरीर को बल नहीं मिलता, उनको वह पसंद नहीं करता। बुरी बातें सोचता है-मन, शक्ति मिलती है-सूक्ष्मशरीर (कर्मशरीर) को, किन्तु क्रियाकलाप सारा होता है-स्थूलशरीर द्वारा। अतः स्थूलशरीर को सब ओर से मार पड़ती है। स्थूलशरीर को इस मार से बचाने के लिए उसके द्वारा छह प्रकार के बाह्यतप कराये जाते हैं ताकि सूक्ष्म (कर्म) शरीर को तपाया जा सके, उसे क्षीण करके निर्जरित और पृथक किया जा सके; बँधे हुए कर्म-पुद्गलों को समभाव से तप करके नष्ट किया जा सके। एक दृष्टि से देखें तो कर्मशरीर स्थूलशरीर का प्रतिपक्षी है, शत्रु है; क्योंकि जब भी दाव लगता है, कर्मशरीर स्थूलशरीर द्वारा बुरे कार्य करवाता है; जिसकी सजा भी उसे ही देता है या मिलती है। अतः स्थूलशरीरधारक अन्तर्मुखी अन्तरात्मा सम्यग्दृष्टि मुमुक्षु-साधक स्थूलशरीर से बाह्यतप करवाकर उसे कर्मों के चंगुल से छुड़ाता है, कर्मनिर्जरण (कर्मक्षय) कराकर कर्मों की कैद से उसे छुड़ाता है। कर्मशरीर द्वारा उसे (स्थूलशरीर को) मिलने वाले विविध दण्डों और दुःखों से बचाता है। इसी दृष्टि से 'दशवैकालिकसूत्र' में कहा गया है-“देहदुक्खं महाफलं।"-शरीर को (तप से) होने वाला दुःख महाफलदायक है।' तप के पैंतीस प्रकार : कौन-से और कैसे-कैसे ? ___ यों तो तप अनेक प्रकार के कहे हैं। परन्तु 'उत्तराध्ययनसूत्र' में जो बाह्य-आभ्यन्तर बारह प्रकार के सम्यक्तप हैं, वे ही कर्ममुक्ति (निर्जरा) और मोक्ष के लिए उपादेय हैं। उनमें छह बाह्यतप हैं-(१) अनशन, (२) ऊनोदरी (अवमौदर्य), (३) वृत्ति-परिसंख्यान या भिक्षाचरी, (४) रस-परित्याग, (५) कायक्लेश, और (६) प्रतिसंलीनता। छह आभ्यन्तरतप ये हैं-(१) प्रायश्चित्त, (२) विनय, (३) वैयावृत्य, (४) स्वाध्याय, (५) व्युत्सर्ग, और (६) ध्यान। इनके अतिरिक्त शास्त्रों और ग्रन्थों में २३ अन्य तपों का भी उल्लेख मिलता है १. (क) 'महावीर की साधना का रहस्य' (आचार्य महाप्रज्ञ) से भाव ग्रहण, पृ. २६४ ।। (ख) दशवैकालिकसूत्र, अ. ८, गा. २७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004248
Book TitleKarm Vignan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages697
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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