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२२६ कर्मविज्ञान : भाग ७
तथा नीच व्यक्ति को निम्न रीति से प्रणाम करना ही प्राणामा प्रव्रज्या का उद्देश्य था। वह लकड़ी के पात्र रखता था और यावज्जीव तक छठ - छठ (बेले-बेले) तप करता था, तप और पारणे के दिन भी आतापनाभूमि में जाकर सूर्य के सम्मुख ऊर्ध्वबाहू खड़े होकर आतापना लेता था। पारणे के दिन ताम्रलिप्ती नगरी के उच्च-नीच-मध्यमकुलों के घरों से भिक्षा में शुद्ध भात लाता और उसे भी २१ बार धोकर खाता था।
किन्तु उसके इस तपश्चरण के पीछे कोई मोक्षलक्षी सम्यग्दृष्टि या सम्यग्ज्ञान या सदुद्देश्य नहीं था । इस कठोर व्रत और तपश्चरण ( बालतप) द्वारा जब उसका शरीर अत्यन्त शुष्क, कृश, रूक्ष एवं दुर्बल हो गया, तब उसने समस्त परिचितों से अपना संकल्प निवेदन करके ताम्रलिप्ती नगरी के बाहर एक परिमित क्षेत्र का प्रमार्जन करके पादपोपगमन नामक यावज्जीव अनशन ग्रहण किया। तत्पश्चात् ताली बालतपस्वी ऋषि ने दो महीने की इस संलेखना तप से आत्मा को भावित करके उस दौरान चमरेन्द्र बनने के निदान को ठुकराकर कालधर्म प्राप्त किया। इस अकामनिर्जरा के फलस्वरूप ईशान देवलोक में ईशान देवेन्द्र के रूप में उत्पन्न हुआ। यद्यपि बालतपस्वी होने से तामली तापस मिथ्यादृष्टि था, किन्तु ईशानेन्द्र पद - प्राप्ति के पश्चात् वह सिद्धान्ततः सम्यग्दृष्टि हो गया। उसका मिथ्याज्ञान सम्यग्ज्ञान हो गया। अतएव भविष्य में वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध, बुद्ध और सर्वकर्ममुक्त होगा ।'
पूरण बालतपस्वी द्वारा कृत अकामनिर्जरा का फल
'भगवतीसूत्र' में ही पूरण बालतपस्वी का वर्णन है। वह विन्ध्याचल की तलहटी में बेमेल सन्निवेश निवासी था । बहुत ही धनाढ्य और तेजस्वी था। उसने इमेयारूवे अज्झथिए
१. तणं तस्स मोरियपुत्तस्स तामलिस्स गाहावतिस्स
जाव
जथा तं किं णं अहं पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं जाव कडाणं कम्माणं एगंतसोक्खयं उवेहेमाणे विहरामि ? सयमेव दारुमयं पडिग्गहं गहाय मुंडे भवित्ता पाणामाए पवज्जा पव्वइत्तए । पव्व एव समा इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिves - कप्प मे जावज्जीवाए छट्टं छट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगब्भिय २ सूराभिमुट्टे आतावणभूमीए आतावेमाणे विहरइ । छट्ठस्स वि यणं पारणयंसि आतावणभूमीओ पच्चोरुभइभूत्ता सयमेव दारुमयं पडिग्गहं गहाय तामलित्तीए नयरीए भिक्खायरियाए एड) सुद्धोयणं पडिग्गाहेइ, तिरुत्तखुत्तो उदएणं पक्खालेइ, तओ पच्छा आहारं आहारेइ ।' पाणामाए पवज्जाए पव्वइए समाणे जं जत्थ पासइ - इंदं वा खंदं वे रुद्दं कागं वा साणं वा पाणं वा हा पासति, तस्स तहा पणामं करेइ । से तेणट्टेण जाव पाणामा पव्वज्जा । "तएण से तामली बालतवस्सीरिसी कालं किच्चा ईसाणे कप्पे
वा
अत्ताणं झूसित्ता
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दो मासियाए संलेहणाए ईसाणदेविंदत्ताए उववन्ने ।
- भगवती, श. ३, उ. १, सू. ३५-४५
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