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ॐ निर्जरा : अनेक रूप और स्वरूप ® २११ *
(अमनस्क) प्राणी हैं, पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक तथा छठे कई त्रसकायिक (सम्मूर्छिम या विकलेन्द्रिय) जीव हैं, जो अन्ध (अन्धों की तरह अज्ञानान्ध अथवा नेत्रेन्द्रिय विकल) हैं, मूढ़ (मोहयुक्त होने से तत्त्वार्थश्रद्धान के अयोग्य) हैं, तामस (मूढ़ताओं = मिथ्यात्वों) में प्रविष्ट की तरह हैं, (ज्ञानावरणीयरूप) तमःपटल तथा (मोहनीय कर्मरूप) मोहजाल से प्रतिच्छन्न (आच्छादित) हैं, वे अकामनिकरण वेदना वेदते हैं। जिनमें अकाम अर्थात् वेदना के अनुभव में अमनस्क होने से अनिच्छा ही निकरण = कारण है, अकामनिकरणक यानी अज्ञानकारणक वेदना कहलाती है। यह अकामनिकरण वेदना अल्प होते हुए भी अकामनिर्जरा होने से निर्जरा अत्यल्प होती है।
संज्ञी और समर्थ जीव भी अकामनिकरणक तथा
प्रकापनिकरणक वेदना वेदते हैं इससे आगे एक प्रश्न और पूछा गया है-“जो जीव संज्ञी (समनस्क = वेदना का अनुभव करने में समर्थ) हैं; क्या वे (समस्त पंचेन्द्रिय संज्ञी त्रस = नारक, तिर्यंच, मनुष्य, देव) जीव भी अकामनिकरणक (अज्ञानपूर्वक या अनिच्छापूर्वक) वेदना को वेदते हैं ? भगवान ने कहा-हाँ, वे भी वेदते हैं।"
इसके कारण का सयुक्तिक प्रतिपादन करते हुए कहा गया है कि "जैसे समर्थ होते हुए भी जो जीव अन्धकार में दीपक के बिना रूपों (पदार्थों) को देख नहीं सकते, जो अवलोकन किये बिना सम्मुख रहे हुए रूपी (पदार्थों) को देख नहीं पाते, अवेक्षण किये बिना पीठ पीछे के भाग को नहीं देख सकते. अवलोकन किये बिना अगल-बगल के रूपों (पदार्थों या दृश्यों) को नहीं देख सकते तथा आलोकन किये बिना न ऊपर के रूपों को देख सकते हैं और न नीचे के रूपों को, इसी प्रकार ये (पूर्वोक्त संज्ञी) जीव समर्थ होते हुए भी अकामनिकरण वेदना वेदते हैं।
निष्कर्ष यह है कि असंज्ञी जीवों के द्रव्यमन न होने से वे इच्छा-शक्ति, ज्ञान-शक्ति या विचार-शक्ति के अभाव में सुख-दुःखरूप वेदना अकामनिकरणरूप में (अनिच्छा से अज्ञानतापूर्वक) भोगते हैं और संज्ञी जीव समनस्क होने से देखने-जानने में अथवा ज्ञान-शक्ति और इच्छा-शक्ति में समर्थ होते हुए भी अनिच्छा या निरुद्देश्यपूर्वक अथवा कर्मक्षयलक्षी दृष्टि के अभाव में मिथ्यादृष्टियुक्त होने से) अकामनिकरणरूप में (अज्ञान दशा में) सुख-दुःखरूप वेदन करते हैं।
इस सम्बन्ध में एक प्रश्न और उठाया गया है कि कई संज्ञी जीव ज्ञान-शक्ति और इच्छा-शक्ति से युक्त होते हुए (समर्थ होते हुए) भी क्या प्रकामनिकरण (प्रबल इच्छापूर्वक) वेदना को भोगते (वेदते) हैं ? इसके उत्तर में भगवान ने कहा-हाँ, वे वेदते हैं; क्यों वेदते हैं, इसका समाधान देते हुए कहा गया है-"जो समुद्र के पार
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