________________
3 अप्रमाद - संवर का सक्रिय आधार और आचार ३
जीवन में प्रमाद साधना को दूषित कर देता है।
प्रश्न होता है, एक उच्च कोटि का साधक रात-दिन साधना करते हुए भी कैसे प्रमाद के चक्कर में आ जाता है ? उच्च कोटि के साधक के जीवन में भी कई ऐसे उतार-चढ़ाव आते हैं, वह कभी अपरिहार्य कारणवश और कभी बिना ही किसी कारणवश प्रमाद का सेवन करके अपनी आत्मा के विकास को अवरुद्ध कर लेता है। एक घटित घटना द्वारा इस तथ्य को समझना ठीक होगा
एक राजकुमार का बचपन का एक मित्र अचानक संन्यासी बन गया। राजकुमार को जब ये समाचार मिले तो वह आश्चर्यान्वित हो गया। सोचा - "वह तो बात-बात में ही आवेश में आ जाता था, उस बात को अपने मन पर गंभीरता से लेता था, वह एकाएक संन्यासी हो गया, . यही आश्चर्य है ।"
वर्षों बाद वह राजकुमार राजा बन गया और संन्यासी बने हुए अपने बालमित्र को अपने राज्य में पधारने का आमंत्रण दिया। उक्त संन्यासी ने आमंत्रण स्वीकार कर लिया। वह भी नियत समय पर आकर ग्राम के बाहर स्थित उद्यान में ठहरा । राजा ने संन्यासी का भव्य स्वागत करने और धूमधाम से ग्राम- प्रवेश कराने हेतु सारे ग्राम को शृंगारित कराया । गली-गली में द्वार बनवाए। रास्ते पर मखमल के गलीचे बिछवाये, उन पर इत्र का छिड़काव कराया। संन्यासी को जब ये समाचार मिले तो न जाने उसे क्या सूझा कि उसने पैरों पर कीचड़ लगा लिया और उन्हीं कीचड़ से भरे पैरों से उसने ग्राम में प्रवेश किया। राजा यह देखकर विचार में पड़ गया कि गाँव में कहीं भी कीचड़ नहीं था, फिर इनके पैर कीचड़ वाले कैसे हो गए? संन्यासी के धूमधाम से प्रवेश और उसके प्रवचन के बाद जब सब लोग चले गये, तब राजा ने संन्यासी से एकान्त में सविनय पूछा - " आपके भव्य प्रवेश पर मैंने गाँव के तमाम रास्तों पर गलीचे बिछवाये, इत्र छिड़कवाया और आप कीचड़-भरे पैरों से उन गलीचों पर चले। मुझे समझ में नहीं आता कि उद्यान से गाँव में पधारते हुए आपके पैरों में किस रास्ते पर कीचड़ लगा ?
संन्यासी जरा अहंकारग्रस्त होकर बोला- “ रास्ते में कहीं कीचड़ नहीं था। मैंने ही उद्यान से चलते समय अपने पैर कीचड़ वाले कर लिये थे और तुम्हारे द्वारा बिछवाये हुए गलीचों पर चला ।” राजा ने पूछा - " ऐसा करने का कोई कारण ? " संन्यासी सगर्व बोला-‘“कारण यह था कि तुमने मेरे स्वागतपूर्वक नगर - प्रवेश के लिए अपने वैभव का प्रदर्शन किया। परन्तु मेरे मन में तेरे वैभव की कोई कीमत नहीं है। इसे बताने के लिए ही मैंने अपने पैर कीचड़ भरे किये और उन गलीचों
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org