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ॐ निर्जरा : अनेक रूप और स्वरूप 8 २०९ ®
ऐसा होने का कारण बताया गया है-"जैसे कोई बिलकुल न पहना हुआ, धोया हुआ या बुनकर द्वारा ताजा बुना हुआ नया वस्त्र हो, उसे बार-बार पहनने से या इस्तेमाल करने से अथवा विभिन्न अशुभ पुद्गलों का संयोग होने से वह वस्त्र मसौते जैसा मलिन एवं दुर्गन्धियुक्त हो जाता है, वैसे ही पूर्वोक्त प्रकार के दुष्कर्म-पुद्गलों के संयोग से वह महाकर्म वाला जीव (आत्मा) भी पूर्वोक्त कुरूपता आदि कारणों से बार-बार असुखरूप में परिणत होता है। इसके विपरीत जो जीव अल्पकर्म, अल्पक्रिया, अल्पासव और अल्पवेदना से युक्त होता है, उस जीव के कर्मपुद्गल सब ओर से छिन्न-भिन्न, विध्वस्त और परिध्वस्त हो जाते हैं, क्योंकि मलिन कीचड़ सना, गंदा और धूल से भरा वस्त्र क्रमशः साफ करते जाने-पानी से धोते जाने से उस पर संलग्न मलिन पुद्गल छूट जाते हैं, अलग हो जाते-समाप्त हो जाते हैं और अन्त में वह वस्त्र साफ, स्वच्छ और चमकीला हो जाता है; इसी प्रकार कर्मों के संयोग से मलिन आत्मा भी सम्यक् तपश्चरणादि द्वारा कर्मपुद्गलों के निर्जरण हो जाने से, झड़ जाने से, विध्वस्त हो जाने से सुखादिरूप में प्रशस्त या परिणत हो जाती है। निष्कर्ष यह है कि कर्मों का आस्रव या बन्ध गाढ़ हो जाने से जीव दुःखी और कर्मनिर्जरा होने से सुखी होता है। परन्तु कर्मों की सकामरूप मोहलक्षी निर्जरा होने से ही आत्मा को ऐसा निराबाध सुख प्राप्त हो सकता है।' १. (क) देखें-महाकर्म आदि की परिष्कृत परिभाषा के विषय में व्याख्याप्रज्ञप्ति विवेचन
(आ. प्र. स., व्यावर), खण्ड २, श. ६, उ. ३, पृ. १७-१८ (ख) (प्र.) से नूणं भंते. ! महाकम्मस्स महाकिरियस्स महासव्वस्स महावेदणस्स सव्वतो
पोग्गला बझंति चिज्जति उवचिज्जति तस्स आया दुरूवत्ताए अहत्ताए, नो उड्ढताए, दुक्खत्ताए, नो सुहत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमइ ? हंता
' महाकम्मस्स तं चेव? . (उ.) गोयमा ! से जहानामए वत्थस्स अहतस्स वा धोतस्स वा तंतुग्गतस्स वा .. आणुपुव्वीए परिभुज्जमाणस्स सव्वओ पोग्गला बज्झंति, चिज्जंति, जाव
परिणमंति, से तेणटेणं। (ग). (प्र.) से नूणं भंते ! अप्पकम्मस्स अप्पकिरियस्स अप्पासवस्स अप्पवेदणस्स सव्वओ
पोग्गला भिज्जति छिज्जति विद्धंसंति सव्वओ पोग्गला परिविद्धं भवति
सया समितं च णं तस्स आया सुरूवत्ताए पसत्थं नेयव्वं जाव सुहत्ताए, नो दुक्खत्ताए भुजो भुजो परिणमंति? (उ.) हंता गोयमा ! जाव परिणमंति।
गोयमा ! से जहानामए वत्थस्स जल्लियस्स वा पंकितस्स वा मइलियस्स वा रइल्लियस्स वा आणुपुवीय परिकमिज्जमाणस्स सुद्धणं वारिणा धोव्वमाणस्स 'सव्वतो पोग्गला भिज्जंति जाव परिणमंति; से तेणटेणं।
-भगवतीसूत्र, श. ६, उ. ३, सू. २-३
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