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अप्रमाद-संवर का सक्रिय आधार और आचार
प्रमाद से हुई ट्रेन-बस-टक्कर से मृत्यु का भंयकर ताण्डव तफान मेल पूरी स्पीड से अपनी पटरी पर धड़धड़ाता हुआ आ रहा है। इधर रेलवे फाटक खुला हुआ है। वहाँ से छात्रों को लेकर शहर को जाने वाली सड़क से एक बस द्रुतगति से आ रही है। बस-ड्राइवर इधर-उधर न देखकर अपनी धुन में बस को बेसब्री से दौड़ाता ला रहा है। ट्रेन जब फुल स्पीड में एकदम फाटक के नजदीक आ गई तब भी बस-ड्राइवर ने सड़क शीघ्र पार करने की धुन में बस नहीं रोकी। ट्रेन-ड्राइवर ने भी रेलवे फाटक निकट ही है, यह जानकर भी ट्रेन को धीमी नहीं की। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि ट्रेन बस से टकरा गई और बस को चकनाचूर करके एक ओर फेंककर आगे बढ़ गई। ऐसी स्थिति में ट्रेन-बस की टक्कर से बस तो बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुई सो हुई ही, बस में बैठे हुए कई छात्र तो घटनास्थल पर ही मर गए। कुछ अधमरे और घायल होकर कराहते रहे। उधर ट्रेन भी क्षतिग्रस्त हो गई। हड़बड़ी में कई डिब्बे पटरी से उतर गए। सम्भव है, उससे सैकड़ों यात्री मौत के मुँह में चले गए होंगे। अनेक यात्री घायल होकर पीड़ा के मारे सहायता के लिए चीख-पुकार कर रहे होंगे। यह मरणान्तक, दुःखद दुर्घटना किस कारण से हुई। एकमात्र बस-ड्राइवर और ट्रेन-ड्राइवर दोनों की गफलत, प्रमाद, असावधानी, उतावली और हड़बड़ी के कारण ! अगर बस-ड्राइवर प्रमाद न करके रेलवे फाटक के पास बस के पहुंचने पर बस को थोड़ा रोक लेता, इधर-उधर देखता, ट्रेन के आने की आवाज सुनते ही सावधान हो जाता, ट्रेन को फाटक से आगे बढ़ जाने पर ही बस को विवेक से चलाता अथवा ट्रेन को रेलवे फाटक से कुछ ही दूरी पर पहुँची देखकर बस को आगे बढ़ाने की हड़बड़ी या उतावली न करता तो ऐसी करुण दुर्घटना से उन मृत छात्रों को बचा सकता था। उधर ट्रेन-ड्राइवर भी रेलवे फाटक के पास ट्रेन को धीमी कर देता या दूर से ही स्पीड धीमी करके रोक लेता तो ऐसी दुर्घटना और जान-माल की हानि न होती। इस दुर्घटना का मूल कारण अगर खोजा जाए तो प्रमाद है।
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