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________________ * योग्य क्षेत्र में पुण्य का बीजारोपण १७५ नरक भूमि में गई। जबकि चन्दनबाला ने अपने तेले के पारणे के अवसर भगवान महावीर जैसे उत्कृष्ट सुपात्र को केवल उड़द के बाकले ही आहार के रूप में दिये । परन्तु वस्तु सामान्य होते हुए भी उसके पीछे भाव उत्कृष्ट शुभ थे, विधि भी शुद्ध थी, दाता भी शुद्ध थी। इस कारण पुण्यबन्ध तो हुआ ही, विनय, वैयावृत्य, ऊणोदरी तप आदि आभ्यन्तर-बाह्य तप के कारण सकाम महानिर्जरा भी हुई। २ शुभ और साथ में निर्जरा के उपर्युक्त उत्कट तपों - भावों के कारण शालिभद्र के पूर्व-भव के निर्धन किन्तु भव्य भावनाशील जीव संगम ने महान् पुण्य और साथ में निर्जरा भी उपार्जित की। उसके प्रभाव से गोभइ जैसे धर्मनिष्ठ पुण्यशाली के यहाँ शालिभद्र के रूप में जन्म और वातावरण मिला। ३ भाव का एक फलित अर्थ यह भी है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी पात्र को किस बुद्धि से, किस दृष्टि से, किस भावना से देता है, उसकी उस बुद्धि, दृष्टि या भावना के आधार पर पुण्य या पापकर्म का बन्ध होता है। यही कारण है कि 'भगवतीसूत्र' केश. ८, उ. ६ में कहा गया है - " भन्ते ! तथारूप असंयमी, अविरत, अप्रत्याख्यात- पापकर्म वाले व्यक्ति को जो श्रमणोपासक ( व्रतधारी श्रावक) प्राक या अप्रासुक, एषणीय या अनैषणीय अशनादि चारों आहार से प्रतिलाभित करता है, वह क्या उपार्जन करता है ? " गौतम ! जो ( श्रमणोपासक देव - गुरु- धर्मबुद्धि से ) तथारूप असंयत आदि को आहारादि देता है, वह एकान्ततः पापकर्म उपार्जन करता है, वह किसी प्रकार की निर्जरा नहीं " करता ।" इसी पाठ को लेकर जैनधर्म का एक सम्प्रदाय ऐसी प्ररूपणा करता है कि " पूर्वोक्त नौ प्रकार का पुण्य तथा रूप श्रमण-माहन को देने से ही होता है, अन्य को देने से पुण्य नहीं होता, अपितु एकान्त पाप होता है । " इस सूत्रपाठ का 'परमार्थ' वस्तुतः इस सूत्रपाठ का परमार्थ न जानने-समझने के कारण ही ऐसी भ्रान्ति हुई है। यहाँ जो असंयती, अव्रती आदि को आहारादि देने से पापकर्मबन्ध का उल्लेख है, उसका रहस्य यह है कि अगर देव - गुरु- धर्मबुद्धि से ऐसे असंयती - अव्रती को जो व्रतबद्ध श्रमणोपासक आहारादि देता है, जो घोर मिथ्यात्व से ग्रस्त है, अनेक जीवों को गाढ़ मिथ्यात्व से ग्रस्त करता है, जो आडम्बर, प्रदर्शन एवं अपनी कुयुक्तिपूर्ण आकर्षक मोहक वाणी से जनता को प्रभावित एवं आकर्षित करके पापवृत्ति प्रवृत्ति १. देखें- ज्ञाताधर्मकथासूत्र, श्रु. १. अ. १६ में नागश्री ब्राह्मणी का वृत्तान्त २. देखें- श्रमण भगवान महावीर में चन्दनबाला का वृत्तान्त ३. देखें-जवाहर किरणावली-शालिभद्र चरित्र ( आचार्य श्री जवाहरलाल जी म. ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004248
Book TitleKarm Vignan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages697
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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