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कर्मविज्ञान : भाग ७ *
मालिक की हर बात पर डाँट-फटकार से नौकर नहीं सुधरता
मान लो, आप जिस कमरे में बैठे हैं, उसी कमरे में नौकर सफाई कर रहा है। . अचानक उसकी गफलत से आदमकद शीशा टूट गया। वह तीन-चार जगह से चटक गया। उसके टूटने की आवाज सुनते ही आपके मस्तिष्क का बोइलर फट गया। आपकी कमी क्रोधान्धतापूर्वक फूट पड़ी-“अबे मूर्ख ! क्या अन्धा होकर काम कर रहा था। तेरी आँखें फूट गई थीं?' नौकर भी तो एक आदमी है, उसके भी हृदय है, वह पाषाण हृदय नहीं है। शीशा फूटने का दर्द उसके भी दिल में है। उसके दिल में भी शीशा फूटने का अफसोस है और घबराहट भी है कि मालिक क्या कहेंगे? कितना उपालम्भ मिलेगा? परन्तु यदि आप उसके उस असह्य. घाव पर हमदर्दी की मरहम-पट्टी न करके उस पर क्रोधावेश में बरस पड़ते हैं, जले पर नमक छिड़कने का-सा कार्य करते हैं तो आप अशुभ योग से निवृत्त होने तथा शुभ योग-संवर करने का मौका चूक गए। मालिक का तुरन्त आक्रोश नौकर को विद्रोही बना सकता है ___सामने वाले व्यक्ति की मनःस्थिति उस समय बहुत ही नाजुक होती है। एक तो स्वयं से भूल हुई, उसका तथा वस्तु के टूट जाने का बिगड़ जाने का आघात तो होता ही है और ऊपर से मालिक की जली-कटी सुननी पड़ती है, इससे मन ही मन तिलमिलाता है-कुढ़ता है। ऐसे समय में तत्काल बोले गए कटु एवं मर्मस्पर्शी शब्द सामने वाले व्यक्ति के दिल के टुकड़े-टुकड़े कर देते हैं। उसके दिल में मालिक के आक्रोशयुक्त वयन की प्रतिक्रिया होती है, वह प्रायः विद्रोही बन जाता है। उसका अहंकार मालिक की बात को सुनी-अनसुनी भी कर सकता है। अहंकारग्रस्त व्यक्ति भूल कबूलवाने के चक्कर में
इतना होने पर भी अगर मालिक उस घटना को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर अपनी बात को जोर देकर प्रस्तुत करता है कि "भूल तुम्हारी ही है। तुम्हारा चेहरा ही कह रहा है।'' इस प्रकार उस तथ्यरहित बात को सिद्ध करने हेतु अर्थहीन प्रयास में पूर्णतया जुट जाता है, तब तो कहता ही क्या? वाद में कदाचित् शान्ति से, ठंडे दिल-दिमाग से सोचने पर मालिक को अपना ऐसा प्रयास विलकुल गलत लगे, पर वह अहंकार के हाथी पर सवार होने से नीचे नहीं उतर सकता, न ही अपनी टक-टक करने की भूल को स्वीकार कर पाता है। वचन से तीखे प्रहार बनाम मधुर और सीमित शब्द
यद्यपि नौकर की उस गलती से मालिक को काफी नुकसान भी हुआ होगा और इस नुकसान के कारण उसके मन में काफी आघात भी पहुँचा होगा, किन्तु
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