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* वचन-संवर की सक्रिय साधना ® १५९ ॐ
शिष्य की रजोहरण से मारने दौड़े। रात्रि के अन्धकार में उन्हें खम्भा दिखाई नहीं दिया। वे सहसा खम्भे से टकरा गए और लहूलुहान होकर वहीं गिर पड़े। खोपड़ी फट गई और वहीं उनके प्राणपखेरू उड़ गये। __ अगर उनका शिष्य बार-बार टोकाटोक न करता और समझाने पर भी जिद्द न पकड़ता तो गुरु उत्तेजित और क्रोधाविष्ट न होते। प्रचण्ड कोप के कारण अन्तिम समय में क्रूर अध्यवसाययुक्त रौद्रध्यानवश वे मरकर संन्यासी बने और वहाँ से भी क्रोध कर भयंकर चण्डकौशिक विषधर बने। शिष्य ने भी गुरु के प्रति द्वेष, विरोध और घृणा के कारण घोर अशुभ कर्म का बन्ध कर लिया।
यह था बार-बार टक-टक करने का दुष्परिणाम ! गुरु-शिष्य दोनों ने भाषासमिति और वचनगुप्ति का पालन किया होता तो ऐसा दुर्गति का अवसर शायद न आता !
टक-टक और टकोर में बहुत अन्तर गुजराती भाषा में दो शब्द इसके लिए प्रयुक्त होते हैं-'टक-टक' और 'टकोर'। टक-टक का अर्थ है-बार-बार टोकना। टक-टक प्रायः पद-पद पर होती है, जबकि टकोर किसी उचित मौके पर ही होती है। टक-टक अन्धाधुंध, बिना विचारे, परिणाम का विवेक किये बिना, बेहिसाब होती है, जबकि टकोर करने वाला , परिणाम का विवेक करता है, द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव और पात्र को देखता है,
अवसर आने पर ही सामने वाले व्यक्ति को उसकी भूल सूचित करता है। टक-टक तिरस्कारबुद्धि से, घृणाभाव से और कभी ईर्ष्या प्रेरित होती है, जबकि टकोर अवसर देखकर करुणाबुद्धि से, स्व-पर-हित की दृष्टि से होती है। टक-टक दीर्घकालिक और प्रायः कर्कश शब्दों से युक्त होती है, जबकि टकोर short and sweet (संक्षेप में और मधुर शब्दों में) होती है। टक-टक से सामने वाला व्यक्ति तकरार करता है, जबकि टकोर से सामने वाला व्यक्ति अपनी भूल का स्वीकार करता है। टक-टक मनुष्य को कठोर और प्रतिक्रियाकारी बनाती है, जबकि टकोर मनुष्य को सोचने-समझने को विवश करती है। इसलिए टक-टक में वाणी की कठोरता होती है, जबकि टकोर में कोमलता। टक-टक में वाणी का अविवेक, अतिरेक और भाषासमिति का अविचार होता है, जबकि टकोर में वाणी का विवेक, सन्तुलन और भाषासमिति का विचार होता है। टक-टक होठों से होती है, टकोर होती है-हृदय से, विवेक के छन्ने से छनी हुई वाणी से। 'सूत्रकृतांगसूत्र' में कहा गया है-"नो वयणं फरुसं वएज्जा।" (कठोर वचन न बोले।) 'दशवैकालिकसूत्र' भी इसी तथ्य का समर्थन करता है-"तहेव फरुसा भासा गुरुभूओवघाइणी।" (कठोर भाषा गुरुतर कर्मबन्ध की कारण और प्राणियों के लिए
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