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________________ * वचन-संवर की सक्रिय साधना 8 १५७ ॐ भावदेव जब से नागिला को छोड़कर मुनिधर्म में प्रव्रजित हुए थे, तभी से नागिला ने अपने मन को समझा दिया-"उन्होंने पवित्र मार्ग पर प्रयाण किया है, अपना कल्याण करें, मेरे लिए अनायास ही मोह-बन्धन कट गया, अतः मुझे भी गृहस्थ-जीवन में रहते हुए आत्म-कल्याण करना चाहिए।" अतः दूसरे दिन नागिला से मिला देने का वादा करके वह मुनि को वन्दन करके चली गई और अपनी एक सहेली के साथ उसके लड़के को खीर खिलाकर तथा वमन की दवा देकर लाई। उसने आते ही मुनि जी से कहा-“लो, यह नागिला आ गई है, आपको क्या कहना है ?" भावदेव-"मैं नागिला को यों ही निराधार छोड़कर चला गया था, अब मैं उसे अपनाने आया हूँ।" नागिला बोली-“आप तो घरबार, कुटुम्ब, धन-धाम आदि तथा समस्त सांसारिक कामभोगों को छोड़कर निकले थे, अब वापस पतन के मार्ग को क्यों अपना रहे हैं ?" इसी दौरान उस लड़के ने वमन किया और वह वापस उसे चाटने लगा। भावदेव मुनि ने यह देख कहा-“अरे, यह क्या घृणित कार्य कर रहा है? वमन की हुई खीर को पुनः क्यों चाट रहा है?" उसने कहा-“यह बहुत स्वादिष्ट लगती है।" मुनि-“वमन किये हुए को तो कोई भी समझदार नहीं चाटता।" इसी मौके पर नागिला बोली-“पर आप तो वमन किये कामभोगों को पुनः अपनाने जा रहे हैं ! क्या आपका यह कार्य शोभास्पद है? मैं तो आपको कदापि स्वीकार नहीं कर सकती। आप अपने बड़े साधुओं के पास जाइए और संयम से आपका मन जो चलित हुआ है, उसका प्रायश्चित्त ग्रहण करके आत्म-शुद्धि कीजिए।" भावदेव मुनि ने अपनी भूल स्वीकार की और क्षमा माँगकर वापस लौटे और संयम में स्थिर हुए। यह है, भूल जानकर युक्ति से बताने और सुधारने की यथार्थ प्रक्रिया। स्थिरीकरण और उपबृंहण का रहस्य जैन आगमों में सम्यक्त्व के आठ अंगों में 'स्थिरीकरण' और 'उपबृंहण' नामक अंग हैं। उनका रहस्यार्थ है-धर्म से डिगते हुए को स्थिर करना तथा कदाचित् मोहवश साधर्मी भाई या बहन से कोई गलती या भूल हो जाए तो चारों ओर उसका ढिंढोरा न पीटकर तथा उसकी निन्दा या बदनामी न करके उसके विशिष्ट गुणों को प्रगट करके, उसके प्रति वात्सल्यभाव रखकर उसके जीवन को सँवारना, उसकी भूल सुधारना। इन दोनों का आशय यह है कि किसी भी साधर्मी भाई-बहन की गलती या भूल को लेकर बाजार में, जाहिर में या समूह में उसकी चर्चा करके उसे बदनाम करना, उसे सत्य-अहिंसादि धर्म में स्थिर करने के बजाय, उक्त सद्धर्म से उसके मन में उस धर्म या व्यक्ति से घृणा पैदा करना है, उसके अहं ... को उत्तेजित करना है, उसमें आक्रोश और क्षोभ पैदा करना है। बहुधा स्वाभिमानी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004248
Book TitleKarm Vignan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages697
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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