________________
५
योग का मार्ग : अयोग-संवर की मंजिल
त्रिविध योग से जीवन नैया को खेने वाला नाविक
जीव एक नाविक है। उसे संसार-समुद्र के उस पार जाना है। संसार समुद्र पार करने के लिये उसे जीवनरूपी नौका मिली है। जीवन नैया को चलाने और संसार-समुद्र में गति-प्रगति एवं प्रवृत्ति करने के लिये उसे मन, वचन और काया, ये तीन योगरूपी तीन उपकरण (साधन) मिले हैं। मनरूपी दिशादर्शक यंत्र है, जिसके सहारे से वह पता लगता रहता है कि जीवन नैया कहीं गन्तव्य (लक्ष्य) से उलटी दिशा में, विपरीत मार्ग से तो नहीं गति कर रही है ? जीवन नैया को काम, क्रोध, लोभ, मोह, राग, द्वेष आदि तूफानी हवाओं से सुरक्षित रखने के लिये अथवा तूफानी हवाओं को रोकने के लिये वचनरूपी पाल मिला है। उसका उपयोग वह (नाविक) जीवन-नैया की सुरक्षा के लिये करता है ताकि नैया कहीं डगमगा न जाए अथवा उथला न खा जाए या किसी चट्टान आदि से टकरा न जाए, जिससे नौका में छिद्र होने से पानी न भर जाए । इसी प्रकार कायारूपी डांड मिला है, जिससे जीवन- नौका को चलाकर आगे से आगे बढ़ता जाता है - मंजिल की ओर। जीवरूपी नाविक का लक्ष्य नौका में बैठकर सैरसपाटा करने का या निश्चिन्तता की नींद लेने अथवा ठंडी-ठंडी अनुकूल हवाएँ पाकर सो जाने का नहीं है। उसे नौका से संसार-समुद्र में ही बार-बार भटकते रहना भी नहीं है, अपितु सहीसलामत अंतिम मंजिल तक संसार-समुद्र के उस पार पहुँचकर ही विश्राम लेना है।
योग से अयोग की मंजिल तक पहुँचने योग्य संसार - यात्रा
आशय यह है कि जीव (आत्मा) को संसार-समुद्र पार करके मुक्ति ( सर्वकर्म-क्षयरूप मोक्ष) की मंजिल प्राप्त करने के लिए पूर्वोक्त त्रिविध योगों ( मन-वचन-काया) द्वारा प्रवृत्ति करते हुए, बीच-बीच में जहाँ-जहाँ अनुपयुक्त रूप से अनुचित प्रवृत्ति (गति) हो रही है, वहाँ उसे तत्काल रोकते हुए तथा मन-वचन-काया से अनावश्यक हो रही हो, वहाँ प्रवृत्ति पर तुरंत अंकुश लगाते हुए, कभी-कभी उन्हें लक्ष्य से भटकते हुए देख लक्ष्य की ओर मोड़ते हुए कभी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org