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________________ 8 ११२ ® कर्मविज्ञान : भाग ७ ॐ कामवृत्ति-नियंत्रण : इन्द्रिय और मन के विषयों के प्रति राग-द्वेष न करने से पाँचों इन्द्रियों और मन की चंचलता इन सबका विषय काम के साथ जुड़ा हुआ है। जब तक पूर्ण वीतराग न हो जाए तब तक काम की तरंग बिलकुल न उठे, यह अत्यन्त कठिन है। आत्मा के साथ जुड़ा हुआ कामतत्त्व वेदमोहनीय कर्म के कारण रहा हुआ है। उस पर नियंत्रण करना या उसका निग्रह करना साधारण बात नहीं है। परन्तु पंचेन्द्रिय-विषय, शरीर आदि के प्रति अनुकूल-प्रतिकूल मिलने पर रांग और द्वेष न किया जाए, समत्व में स्थित रहा जाए तो कामवृत्ति-नियंत्रण कोई कठिन भी नहीं है। ध्यानयोग द्वारा कामवृत्ति पर नियंत्रण ___ एक महान् चिन्तक ने कामवृत्ति पर नियंत्रण पाने के लिए तीन उपाय बताए हैं। पहला है-समवृत्ति-श्वासप्रेक्षा, अर्थात् अनुलोम-विलोम प्राणायाम का प्रयोग। दूसरा है-आनन्दकेन्द्र पर ध्यान करना। तीसरा है-अन्तर्यात्रा, अर्थात् चेतना को. रीढ़ की हड्डी के निचले सिरे से लेकर ज्ञानकेन्द्र (मस्तिष्क) में ले जाना। __ समवृत्ति-श्वासप्रेक्षा से मस्तिष्क का दाहिना पटल (सृजनात्मक बौद्धिक शक्तियों का केन्द्र) और बायाँ पटल (भावनात्मक क्षमताओं का केन्द्र) दोनों की क्षमताएँ विकसित हो जाती हैं और पूर्ण व्यक्तित्व का विकास हो सकता है। आनन्दकेन्द्र पर ध्यान करने से कामवृति पर नियंत्रण पाने का मेरुदण्ड में जो स्थान है, जिसे 'लंबर रीजन' कहते हैं, उस पर नियंत्रण हो जाने से कामोत्तेजना पर नियंत्रण हो जाता है। अन्तर्यात्रा से समूचे मेरुदण्ड. की प्रणाली पर नियंत्रण हो जाता है। मेरुदण्ड के पास अनेक स्वचालित वृत्ति-प्रवृत्तियों का नियंत्रण है। यद्यपि वृत्तियाँ बहुत जिद्दी होती हैं, वे बार-बार उठती रहती हैं, तथापि उन पर बार-बार चोट करने से वे नियंत्रित हो सकती हैं। इन तीनों उपायों को बार-बार दोहराने से साधक कामवृत्ति पर नियंत्रण करने में अन्त में सफलता मिलती है। योग-साधना की दृष्टि से कामवृत्ति-नियंत्रण : एक अनुचिन्तन योग-साधना की दृष्टि से भी कामवृत्ति पर नियंत्रण का विचार करना आवश्यक है। ब्रह्मचर्य को परिपुष्ट करने, वीर्य को ऊर्ध्वरेता बनाने तथा वीर्य-रक्षा करके आत्मा को बलवान् बनाने पर ही वह परमात्म-तत्त्व (शुद्धात्म-तत्त्व) में रमण कर सकता है। योग का अर्थ ही है-जीवात्मा और परमात्मा का ऐक्य या आत्मा का परमात्म-तत्त्व से जुड़ना। इसके लिए दो प्रकार के योगों को विशेष प्रकार से जैनाचार्यों ने उपयोगी बताया है-(१) हठयोग, और (२) राजयोग। हठयोग शरीर और प्राण पर नियमन करने का साधन है। इसके अभ्यास से स्वास्थ्य और दीर्घायुष्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004248
Book TitleKarm Vignan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages697
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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