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________________ ॐ कामवृत्ति से विरति की मीमांसा ॐ १११ * होकर अभी तक पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य-साधना नहीं कर सका तथा अब भी अगर नहीं सँभला तो भविष्य में नरकादि दुर्गतियों में अनेक प्रकार की शारीरिक, मानसिक वेदनाएँ जबरन सहनी पड़ेंगी, वहाँ किसी प्रकार का सद्बोध या सम्यग्दर्शन या सम्यक् उपदेश (ज्ञान) भी मिलना कठिन है। वर्तमान में भी कामवासना के पाप में पढूंगा तो उससे मेरी आत्मा का पतन, अशुभ बन्ध, आरोग्य नाश, मानसिक तनाव, विकृति आदि तो होंगे ही, वर्तमान और भविष्य में भी इनका फल अशुभ ही मिलेगा। इसलिए भूतकाल से बोधपाठ लेकर कामवृत्ति से विरत होने का मार्ग हैपरलोकभावना (परभव अनुप्रेक्षा)। विपाकविचय नामक धर्मध्यान का एक पाद भी इसी का द्योतक है। अतः क्षणिक कामसुख के लिए टनबन्ध कर्मविपाकजनित दुःख भोगना पड़े, यह अपने हाथ से अपने विनाश को न्यौता देना है। इसके पश्चात् वर्तमानकालं में काम-सुख से विरत होने के लिए अनित्यभावना, अशुचित्वभावना, भावीविपाकभावना एवं इस जन्म की शारीरिक-मानसिक आरोग्यभावना का सतत अभ्यास करना चाहिए। ये सब भावनाएँ या अनुप्रेक्षाएँ कामवासना के आक्रमण को पहले से हटाने के लिए रक्षणात्मक ढाल हैं अथवा सुरक्षात्मक कवच हैं। ___ अकामसिद्धि के कतिपय प्रयोग . भविष्यकाल में कामवृत्ति उत्पन्न न हो, ब्रह्मचर्यसिद्धि या अकामसिद्धि आसानी से हो सके, इसके लिए 'आचारांगसूत्र' में कामवासना से बाधित-पीड़ित साधकों के लिए कुछ प्रयोग प्रस्तुत किये गए हैं-(१) निर्बल (रसरहित) आहार करे, (२) अवमौदर्य तप करे, (३) खड़े-खड़े कायोत्सर्ग करे, (४) ग्रामानुग्राम विहरण करे, (५) आहार को बिलकुल छोड़ दे, बाह्याभ्यन्तर तप करे, और (६) अब्रह्मचर्य • या कामवृत्ति से मन को मोड़कर शुद्ध, निष्काम विश्व-वात्सल्यवृत्ति में जोड़ दे। . इतने पर भी कामवासना से छुटकारा न मिलता हो, कामवासना का बार-बार हमला होता हो तो 'दशवैकालिकसूत्र' में बताये अनुसार-शरीर को इतना पराक्रमी बनाओ कि उसकी सुकुमारता और सुख-सुविधा छोड़कर आतापना ले सको। इस प्रकार कामवृत्ति का अतिक्रमण करके उस पर पूर्ण नियंत्रण करो, हठ प्रयोग करो, क्योंकि काम सदैव दुःखरूप है। सुकुमारता आती है, वहाँ कामवृत्ति झट आक्रमण कर देती है। सौकुमार्य में डूबे हुए साधक का मन न तो ज्ञान-ध्यान में लगेगा, न ही स्वाध्याय में। बहुत ही सावधानी और जागरूक रहना होगा साधक को। ये सभी सूत्र कामवृत्ति को रोकने और उपादान को प्रबल बनाने के लिए हैं। काम संकल्प से पैदा होता है, अगर संकल्प को शुभ दिशा की ओर मोड़ा जाए, उसे मजबूत बनाया जाए तो कामबाधाएँ टिक नहीं सकेंगी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004248
Book TitleKarm Vignan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages697
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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