________________
ॐ कामवृत्ति से विरति की मीमांसा 8 १०५ &
विजय सेठ-विजया सेठानी ब्रह्मचर्य में दृढ़ रहे देशविरति गृहस्थ श्रावकों में विजय सेठ और विजया सेठानी के कामवृत्ति पर पूर्ण विजय पूर्ण ब्रह्मचर्य की सिद्धि की पुण्य कथा प्रसिद्ध है। एक ही शयनकक्ष में एकान्तवास करना और दाम्पत्य जीवन में एकनिष्ठापूर्वक ब्रह्मचर्य पालना सामान्य बात नहीं है। परन्तु उन दोनों पुण्यात्माओं का उपादान शुद्ध था।
__सुदर्शन सेठ कामोत्तेजक निमित्त मिलने पर तुरन्त सँभल गए सबसे आश्चर्यजनक वृत्तान्त तो सुदर्शन सेठ का है जिन्होंने कामवासना से प्रेरित होकर अभया रानी ने एकान्त में भोग सुख की याचना की थी। सेठ सुदर्शन तुरंत सँभल गए। उन्होंने छूटते ही कहा-मैं नपुंसक हूँ (पर-स्त्री के लिये)। किन्तु रानी को जब बाद में पता लगा कि सुदर्शन के कई संतान भी हैं, वह नपुंसक कैसे? अतः उसने पौषधलीन सुदर्शन को पकड़कर मँगवाया और फिर एकान्त में बहुत प्रार्थना की। मगर सुदर्शन का एक रोम भी कामविकार से विकृत न हुआ।
... इन आदर्श साधकों का अनुकरण नहीं करना है परन्तु ये दृष्टान्त आदर्श कामविजयी मानवों के हैं, इनका अनुसरण करने का साहस सामान्य सर्वविरति या देशविरति साधक-साधिका वर्ग को नहीं करना है, क्योंकि कामवासना के अनादिकालीन संस्कार जो अवचेतन मन में छिपे पड़े हैं, वे कब और किस निमित्त से उभर उठेंगे, कहा नहीं जा सकता। फिर भी काम-संवर और कामवासना (वेदमोहनीय कर्म) की निर्जरा का अभ्यास तो विविध उपायों से करते ही रहना चाहिए।
काम-संवर का तृतीय उपाय : परलोकदृष्टि एवं पापभीरुता . काम-संवर के जो दो उपाय बताये थे, उनके सिवाय कुछ उपाय और भी हैं। तीसरा उपाय है-परलोकदृष्टि और पापभीरुता। मोक्ष-प्राप्ति बहुत ही कठिन है और अनेक वर्षों की, कदाचित् अनेक जन्मों की साधना के बाद कर्मों से सर्वथा मुक्ति मिलती है। उस दौरान मध्यावधि दीर्घकाल की साधना के समय काम-संवर कैसे हो? इसके लिए उपर्युक्त उपाय बताया गया है। कामवासना के मन-वचन-काया से सेवन के परिणाम सतत कितने लम्बे काल तक दुर्गति में भोगने पड़ते हैं ? इस प्रकार का विस्तृत निरूपण सूत्रकृतांगसूत्र में बताया गया है। दुर्गतियों में मिलने वाले दुःखद एवं भयंकर दण्ड का वर्णन पढ़ने से रोंगटे खड़े हो जाते हैं। कामवासना में फँसी हुई आत्मा नरकगति में चली जाए तो वहाँ धधकती पुतलियों एवं पुतलों से जबरन आलिंगन कराया जाता है। उस असह्य वेदना को समझकर
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org