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ॐ कामवृत्ति से विरति की मीमांसा ॐ १०३ *
संवर और निर्जरा दोनों उपादान शुद्धि के लिए अपेक्षित हैं चूंकि कामवृत्ति तथा अन्य सभी वृत्तियों का उत्पत्तिस्रोत है-मोहनीय कर्म। मोहकर्म को शान्त और अनुशासित करने के लिए दोनों ओर से काम होना
चाहिए।
कामवृत्ति पर विजय के लिए निरोध और शोधन दोनों जरूरी जैसे युद्ध के समय योद्धा को दो तरह से शत्रु का सामना करना होता है-शत्रु को अपनी सीमा में न घुसने देना-आगे न बढ़ने देना और जो शत्रु घुस चुके हैं, उन्हे खदेड़ देना या समाप्त कर देना। इसी प्रकार मोहकर्मरूपी शत्रु को परास्त करने के लिए एक ओर से नई कामवासना को पैदा न होने देना, कामवासना का निमित्त से दूर रहना, परन्तु अकस्मात् निमित्त मिल जाए तो तुरन्त उस कामानव का निरोध (संवर) करना। दूसरी ओर से कामवासना का जो जत्था अन्तर्मन में पड़ा है, वेदमोहनीय कर्म के संस्कार (परमाणु) जो पहले से ही घुसे हुए हैं, उनकी क्षय या विलय (निर्जरा) करना। - यह कार्य कोई एक-दो दिन या महीने-दो महीने में नहीं हो पाता। इसके लिए दीर्घकाल तक, निरन्तर, दृढ़ता और निष्ठापूर्वक तथा सत्कार एवं विनय के साथ अभ्यास करना आवश्यक है। कामवसना का निमित्त मिलते ही ज्ञाता-द्रष्टाभाव रखना संवर है। इससे नई कामवृत्ति उत्पन्न नहीं हो सकती, घुस नहीं सकती। परन्तु जो अन्तर्मन (अज्ञातमन) में पुराना संचय पड़ा है, उसके क्षयीकरण के लिए तप, कषाय-विजय, प्रायश्चित्त, कायोत्सर्ग, परीषह-विजय; समभाव आदि का सतत अभ्यास अपेक्षित है।
संवर और निर्जरा-निरोध और शोधन-गे दो प्रणालियाँ कामवासना पर विजय प्राप्त करने के अनूठे उपाय हैं। इन्हीं दोनों के द्वारा उपादान को आत्मा को शुद्ध बनाया जा सकता है; वेदमोहनीय कर्मों से रिक्त या मुक्त बनाया जा सकता है।
शुद्ध उपादान वाला व्यक्ति कामवृत्ति का तुरन्त संवर कर लेता है ___ एक बात निश्चित है कि जिसका उपादान वास्तव में शुद्ध हो गया है, वह व्यक्ति कामवासना के अशुभ या अनुकूल निमित्त मिलते ही झटपट सावधान होकर प्रबल संवेगपूर्वक उसे वहीं रोक देता है, मन में भी घुसने नहीं देता।
___ रामकृष्ण परमहंस की कामवृत्तिनिरोध की परीक्षा रामकृष्ण परमहंस का शारदामणिदेवी के साथ विवाह हेते हुए भी वे आजीवन ब्रह्मचारी रहे। एक बार उनके ब्रह्मचर्य की कसौटी करने का माथुर बाबू
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