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ॐ १०२ • कर्मविज्ञान : भाग ७
उपादान को शुद्ध एवं सुदृढ़ बनाने के उपाय
उपादान को शुद्ध बनाने और सुदृढ़ रखने के लिए शास्त्रकारों ने तय मनीषियों ने कतिपय उपाय बताये हैं, जिनको जीवन में आचरित करने से व्यति काम-संवर की साधना में सुदृढ़ हो सकता है। साध्य पर दृढ़ रहें : मोक्षलक्ष, धर्मपक्ष
सर्वप्रथम काम-संवर के साधक-साधिका को अपना लक्ष्य-साध्य निर्धारित करके उस पर प्रति क्षण दृढ़ रहना चाहिए। सर्वकर्मों से सर्वथा मुक्त होनाछुटकारा पाना, यानी मोक्ष पाना, साधक का सर्वांगीण लक्ष्य है। कामवासना से सर्वथा सर्वदा छुटकारा पाना-अर्थात् वेदमोहनीय कर्म से मुक्त होना सर्वप्रथम लक्ष्य है, ऐसी भावना, श्रद्धा एवं निष्ठा आवश्यक है। संसार में फँसाने वाले बंधनोंमोहकर्मबन्धों से मोक्ष पाने की तड़फन सतत रहनी चाहिए। प्रत्येक शुभ प्रवृत्ति करते समय या धर्मक्रियाएँ करते समय भी मोक्ष का ही रटना, मोक्ष का अन्तर्मन में जप होना चाहिए। ___ साथ ही मोक्ष के साधनरूप सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र-तपरूप धर्म के कट्ट पक्षपाती एवं निष्ठावान रहना आवश्यक है। आत्म-धर्म में श्रद्धा-निष्ठा रख वाला साधक स्वयं तदनुकूल धर्मक्रिया एवं प्रवृत्ति करेगा, धर्माराधक भाई-बहनो साधर्मिकों के साथ वात्सल्यभाव रखेगा, साधु-साध्वियों के प्रति भी श्रद्धाभत्ति रखेगा, परन्तु उसमें सावधानी अवश्य रखेगा। कामविकार के निमित्तों से दूर रह का प्रयत्न करेगा। ऐसा करने से वह साधनाशील व्यक्ति मोक्षलक्ष्य और शुद्ध ध का पक्ष लेकर आत्मवान् बनकर मोहनीय कर्म का उत्पादन भी रोकेगा और उसव क्षय भी करेगा। उसका उपादान भी निर्मल और सबल होकर कामवासना को आ. से पहले ही या आते ही मार भगायेगा।
पहली बात यह ध्यान रखनी है, उपादान शुद्धि के लिए लक्ष्य विराट् होना चाहिए। लक्ष्य जितना विराट् होगा, उतनी ही सात्त्विकता और शान्ति अधिक होगी। शारीरिक आरोग्य, परलोक या राष्ट्र की दृष्टि से कामनिवृत्ति (ब्रह्मचर्य-साधना) की जाएगी तो कामवासना थोड़े समय के लिए तो रुक जा सकती है, परन्तु आरोग्य ठीक होते ही या राष्ट्र व्यवस्था ठीक होते ही वासना पुनः भड़क सकती है। अतः उपादान शुद्धि पूर्ण रूप से करनी हो तो पूर्णतया कर्ममुक्ति (मोक्ष) का लक्ष्य ही प्रति क्षण दृष्टिगत रहना चाहिए, साथ ही मानसिक तीव्रतापूर्वक संवर-निर्जारारूप सद्धर्म का पक्ष भी दृष्टिसमक्ष रखना अपेक्षित है।
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