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ॐ कामवृत्ति से विरति की मीमांसा ॐ १०१ ॐ
उपादान शुद्ध एवं सुदृढ़ होने पर अशुभ निमित्तों का संग मिलने पर भी कामविकार से दूर रहना शक्य है। परन्तु उपादान वैसा शुद्ध और सुदृढ़ बनाने हेतु दीर्घकालिक ब्रह्मचर्य-साधना के अतिरिक्त परमात्म-भक्ति एवं सद्गुरु-कृपा अपेक्षित है।
कामवृत्ति पर विजय पाने के मुख्य दो उपाय इसीलिए कामवृत्ति पर विजय-प्राप्ति के इच्छुक व्यक्ति के लिए दो उपाय हैं(१) कुसंस्कारों को खत्म करो। अर्थात् उपादान को इतना शुद्ध और सुदृढ़ बना लो कि वासना की आग स्वतः ठंडी हो जाए, निमित्तों के मिलने पर भी भड़के नहीं। (२) अथवा निमित्तों से दूर रहो, कामोत्तेजक दृश्य, श्रव्य, खाद्य, स्पृश्य, प्रेक्ष्य सजीव-निर्जीव पदार्थों के पास फटकने पर अपने आपको सावधान रखकर उनसे बचो अथवा उनका मार्गान्तरीकरण, उदात्तीकरण या दमन-शमन कर दो।
. साधनाकाल में भ्रान्तिवश निमित्ताधीन न हो कई साधक अहंकारवश भ्रान्ति से यह समझ बैठते हैं कि अब मेरा उपादान शुद्ध हो गया है, अतः अशुभ निमित्तों का संग होने पर भी कोई हर्ज नहीं। काम-संवर का सही रास्ता यह नहीं है। साधनाकाल में यथासम्भव निमित्तों से दूर रहना चाहिए, मन से उन-उन निमित्तों की इच्छा नहीं करनी चाहिए। 'सूत्रकृतांगसूत्र' में 'स्त्रीपरिज्ञा' नामक अध्ययन में निमित्तों से संग से साधक की शिथिलता का सांगोपांग वर्णन किया गया है।
कामविकार के निमित्त कहीं भी मिल सकते हैं यह तो प्रायः अशक्य है कि काम-संवर के साधक को निमित्त मिले ही नहीं या काम-संवर. का साधक निमित्तों के संग से भागकर जंगल में एकान्त में चला जाए। व्याख्यान, दर्शन, स्वाध्याय, गोचरी, प्रत्याख्यान, विहार आदि प्रसंगों में साधुओं को महिलाओं का और साध्वियों को पुरुषों से वास्ता पड़ता है; गृहस्थ साधक-साधिकाओं को भी यात्रा, तीर्थयात्रा, विवाह, उत्सव, पर्व, घर में युवक-युवती, बहन-भाई, भाई-भाभी आदि के साथ रहने का तथा विद्यालयों-कार्यालयों आदि में, सभा-सोसाइटियों में भी मिलने-जुलने का अवसर आता है। ऐसी स्थिति में काम-संवर के साधक को एक ओर से, जितना भी हो सके, अशुभ निमित्तों का संग टालना और दूसरी ओर से उपादान को निर्मल बनाने या शुद्ध व सुदृढ़ रखने का उपाय आजमाना चाहिए। ताकि अनिवार्य रूप से आ पड़ने वाले अशुभ निमित्तों से कामोत्तेजना न भड़क सके। १. 'जो जे कामकुम्भ ढोलाय ना !' (मुनि श्री चन्द्रशेखरविजय जी म.) से भावांश ग्रहण, पृ. २७
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