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® १०० 8 कर्मविज्ञान : भाग ७ ®
कामवासना सेवन करना; ये आठ प्रकार के निमित्त कामवासना को उत्तेजित कर वाले हैं, जिनके परिणामस्वरूप शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक, नैतिर एवं आर्थिक आदि सभी दृष्टियों से मनुष्य बर्बाद हो जाता है। अपरिपक्व-साधक के लिए अशुभ निमित्तों से बचना आवश्यक ___ कई लोग साधक की भूमिका का विचार किये बिना ही कह देते हैं-"निमित्तों से डर-डरकर चलने से कामविकार जीत लिया या उस पर नियंत्रण हो गया. यह कैसे कहा जा सकता है? इसलिए स्त्री-पुरुष साथ में रहें, एक ही आसन पर बैठे-उठे, साथ-साथ भ्रमण करें, तभी साधक के ब्रह्मचर्य की परीक्षा हे सकती है कि उसने कामवृत्ति पर विजय पा ली है, काम-संवर की. साधना में परिपक्व हो गया है।"
यह एकान्त बात है। जिसकी ब्रह्मचर्य-साधना स्थूलिभद्र के समान सर्वथा परिपक्व हो गई हो, उसके मन में निमित्त मिलने पर भी स्खलना नहीं हो सकती। स्थूलिभद्र गुरु-आज्ञा लेकर अपनी गृहस्थाश्रम की प्रेमिका रूपकोशा के यहाँ चातुर्मास व्यतीत करने गए थे। रूपकोशा ने उन्हें आकर्षित करने के सभी उपाय कर लिये। अंगस्पर्श को छोड़कर षट्रसयुक्त भोजन, मोहक नृत्य-गीत-वाद्य तथा शृंगारयुक्त मोहकरूप आदि सभी उनके समक्ष प्रस्तुत किये। परन्तु स्थूलिभद्र का उपादान इतना परिशुद्ध था कि उनके मन के किसी भी कोने में कामवासना स्फुरित न हो सकी। इतना ही नहीं, स्थूलिभद्र मुनि के सम्पर्क ने रूपकोशा के जीवन को बदल दिया। वह सात्त्विक एवं व्रतबद्ध श्राविका बन गई।. उपादान शुद्ध व दृढ़ हुए बिना निमित्तों की उपेक्षा करना ठीक नहीं ___ इसीलिए निमित्तों के उपस्थित होने पर प्रत्येक व्यक्ति के लिए कामोत्तेजना से बचना मुश्किल है, क्योंकि उसका उपादान इतना शुद्ध एवं सुदृढ़ नहीं बना है। इसीलिए मनीषियों ने कहा है-“जहर की परीक्षा नहीं की जाती। काजल की कोठरी में घुसने पर काला दाग लगना सम्भव है। आग का स्पर्श पाकर जले बिना रहना कठिन है।' आग और घी के स्पर्श की तरह स्त्री-पुरुष का एकान्त में और अत्यधिक संयोग कामाग्नि को भड़काता है। उपादान शुद्ध व सुदृढ़ हुए बिना कामवृत्ति पर विजय पाना कठिन
यहाँ उपादान आत्मा है, मन, इन्द्रियाँ, शरीर आदि उसके शुद्धता-अशुद्धता, सुदृढ़ता-असुदृढ़ता के चिह्न बताने के लिए व्यक्त उपकरण हैं। जब तक उपादान शुद्ध, निर्मल और सुदृढ़ नहीं होता, वहाँ तक कामवृत्ति पर विजय पाना बहुत कठिन है।
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