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________________ परावर्तमाना और अपरावर्तमाना प्रकृतियाँ ६३ स्थिर, शुभ, अस्थिर, अशुभ, ये चार प्रकृतियाँ उदयदशा में विरोधिनी नहीं हैं, एक जीव के एक समय में चारों का उदय हो सकता है, किन्तु बन्धदशा में विरोधिनी हैं, क्योंकि स्थिर के साथ अस्थिर का तथा शुभ के साथ अशुभ का बन्ध नहीं होता। इसलिए ये चारों प्रकृतियाँ परावर्तमाना हैं। शेष'६६ प्रकृतियाँ बन्ध और उदय दोनों अंवस्थाओं में परस्पर विरोधिनी हैं। इसलिए ये परावर्तमाना हैं। तैजस-कार्मण शरीर बंधते समय औदारिक आदि शरीर भी बंध सकते हैं, क्योंकि ये दोनों शरीर अपरावर्तमाना प्रकृतियों में हैं, किन्तु औदारिक शरीर बंधते समय वैक्रियशरीर को कभी बंधने नहीं देता, क्योंकि ये दोनों परावर्तमाना प्रकृतियों में हैं।१।। अपरावर्तमाना प्रकृतियों की संख्या पंचम कर्मग्रन्थ में अपरावर्तमाना कर्मप्रकृतियों में चार घातिकर्मों की तथा कुछ नामकर्म की प्रकृतियाँ गिनाई हैं। इनमें पांच ज्ञानावरण की, चार दर्शनावरण की, तीन मोहनीय की, पांच अन्तराय की, और नामकर्म की नौ ध्रुवबंधिनी तथा पराघात, उच्छ्वास और तीर्थंकर, यों १२ प्रकृतियाँ, यों ५+४+३+५+१२-२९ प्रकृतियाँ अपरावर्तमाना हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं (१) ज्ञानावरण-मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्याय और केवल ज्ञानावरण। (२) दर्शनावरण-चक्षु, अचक्षु, अवधि और केवलदर्शनावरण। (३) मोहनीय-भय, जुगुप्सा, मिथ्यात्व। . (४) नामकर्म-वर्णादिचतुष्क, तैजस, कार्मण शरीर, अगुरुलघु, निर्माण, उपघात, पराघात, उच्छ्वास और तीर्थंकरनाम। (५) अन्तराय-दान-लाभ-भोग-उपभोग-वीर्यान्तराय। ये उनतीस प्रकृतियाँ किसी दूसरी कर्मप्रकृति के बन्ध, उदय अथवा बन्ध-उदय दोनों को रोककर अपना बंध, उदय और बन्ध-उदय नहीं करतीं; इसलिए ये अपरावर्तमाना प्रकृतियाँ कहलाती हैं।२ एक प्रश्न : समुचित समाधान प्रश्न होता है-सम्यक्त्वमोहनीय और मिश्रमोहनीय इन दोनों प्रकृतियों के उदय १. (क) पंचम कर्मग्रन्थ गा. १९ विवेचन (पं. कैलाशचन्द्रजी), पृ. ५१ (ख) मोक्षप्रकाश से भावांशग्रहण, पृ. १२० । (ग) कम्मपयडी (कर्मप्रकृति) की यशोधर विजयकृत टीका गाथा १ में इस विषय में विवेचन है। २. पंचम कर्मग्रन्थ गा. १८, विवेचन (मरुधरकेसरीजी), पृ. ६८ जाय। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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