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________________ परावर्तमाना और अपरावर्तमाना प्रकृतियाँ | घुड़दौड़ के दो प्रकार के घोड़ों की तरह कर्मों की दो प्रकार की प्रकृतियाँ घुड़दौड़ के मैदान में जब रेस के घोड़े दौड़ते हैं, तब उनमे बड़ी रस्साकसी चलती है, जो घोड़ा सबसे अधिक तेजीला और फुर्तीला होता है, वह आगे बढ़ जाता है और बाजी जीत जाता है। कुछ उससे कम फुर्तीले घोड़े होते हैं, वे दूसरे नंबर पर आ जाते हैं। जो घोड़े फुर्तीले होते हैं, वे दूसरे घोड़ों को आगे आने नहीं देते। किन्तु जो घोड़े कमजोर और सुस्त होते हैं, वे दिखने में भले ही हृष्टपुष्ट दिखते हों, रेसकोर्स में वे आगे नहीं बढ़ पाते, उनकी गति-प्रगति तीव्र नहीं होती, इसलिए वे दूसरे घोड़ों को आगे बढ़ने देते हैं, स्वयं उसमें किसी प्रकार की बाधा नहीं डालते। ____ परावर्तमाना-अपरावर्तमाना प्रकृतियों का स्वरूप इसी प्रकार कर्मबंधों की भी जीवों के जीवन में घुड़दौड़ चलती रहती है। कर्मों की घुड़दौड़ में कई कर्म ऐसे होते हैं, जिनकी प्रकृतियाँ तीव्र और फुर्तीली गति वाली होती हैं, वे बन्ध, उदय और बन्धोदय में दूसरे कर्मों को रोक देती हैं, और स्वयं, 'अपना बंध, उदय और बंधोदय करती हैं । जबकि कुछ कर्म ऐसे होते हैं, जिनकी प्रकृतियाँ ऐसी होती हैं कि वे बन्ध, उदय और बन्धोदय की दौड़ में दूसरी प्रकृतियों को रोक कर अपना बंध, उदय और बंधोदय नहीं करती अर्थात्-वे दूसरी प्रकृतियों को बंध, उदय और बंधोदय करने में रोकती नहीं हैं। इन दोनों में प्रथम वर्ग की कर्मप्रकृतियाँ परावर्तमाना कहलाती हैं और द्वितीय वर्ग की कर्मप्रकृतियाँ कहलाती हैं-अपरावर्तमाना। - परावर्तमाना कर्मप्रकृतियाँ वे कहलाती हैं, जो दूसरी प्रकृतियों के बन्ध, उदय अथवा बंधोदय दोनों को रोककर, अपना बन्ध, उदय और बन्धोदय करती हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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