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________________ ५४२ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ भोजन से निवृत्त होकर ज्यों ही राजकुमारी और उसका पति ऊँट पर सवार हुए और राजकुमार ने ऊँट को उठने का संकेत दिया। काफी प्रयास के बाद भी जब ऊँट न उठा और मार खाता रहा, तब एक बार तो दोनों उतर पड़े। राजकुमार दूर हट गया तो राजकुमारी ने प्यार से ऊँट की गर्दन पर कोमल हाथ फिराया, फिर कान के पास मुँह ले जाकर स्नेहपूर्ण शब्दों में समझाया-“पिछला कर्जा चुकाये बिना छुटकारा नहीं होगा। मरने से कर्ज नहीं उतरेगा, ऐसी जिद करके मरने से तो तुम्हें कुगति मिलेगी, कर्जा तो फिर भी चुकाना पड़ेगा। अतः इस समय पिछले सम्बन्धों को भूलकर तुम उठो, अपने पर चढ़े हुए कर्ज को हंसकर चुकाओ।" राजकुमारी के प्रेमपूर्ण एवं युक्ति-संगत शब्दों का ऊँट पर अचूक प्रभाव पड़ा। तभी राजकुमार को उसने ऊँट पर बैठने का संकेत किया और स्वयं भी बैठी। अब ऊँट जरा-से संकेत से खड़ा हो गया और चलने लगा। ऊँट भी सोचता जाता था कि कर्ज तो चुकाना ही पड़ेगा। . यह है-मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य के साथ बांधे हुए अशुभऋणानुबन्ध के फल स्वरूप ऊँट बनकर ऋण चुकाने का ज्वलन्त उदाहरण! बैल बनकर ऋण चुकाना पड़ा-अभावपीड़ित पं. जगन्नाथ ने सब ओर से हार-थककर सेठ हीरालाल के अनाज के गोदाम से अनाज चुराकर लाने का निश्चय किया। एक दिन जब सेठ के भवन में उनके सिवाय और कोई नहीं था, तब मौका देखकर दीवार फांदकर वह घर में प्रविष्ट हुआ। ज्यों ही गोदाम की ओर बढ़ने लगा, त्यों ही सेठ हीरालाल की खांसने की लगातार आवाज सनकर बैलों के बंधने के स्थान के पास पड़ी लोहे की कोठी के पीछे दुबक कर बैठ गया। तभी उसके कान में आवाज आई। सेठ का कालिया बैल धौलिये बैल से कह रहा था-भाई धौलिया ! इस सेठ का पिछले जन्म का जो कर्जा था, उसे चुकाने के लिए ही मैं बैल बना था और इसकी सेवा करता रहा। वह कर्जा दो दिन के बाद चुक जाएगा और मैं शरीर छोड़ कर चला जाऊँगा। इस पर धौलिया ने कहा-तुम्हारा कर्ज तो चुक जाएगा, पर मुझ पर पांच हजार का ऋण है। पूर्वजन्म में इस सेठ के सीधेपन का लाभ उठा कर मैंने इसे बहुत ठगा। उस अशुभ ऋणानुबन्ध के उदय के कारण मैं इसके यहाँ बैल बना। मेरा कर्जा एक उपाय से उतर सकता है। वह यह कि पिछले जन्म में राजा एक व्यापारी था और राजा का हाथी था-दलाल। राजा दानी और उदारहृदय था। एक बार व्यापार में उसे रुपयों की आवश्यकता पड़ी तो उस दलाल के मारफत उसने ५ हजार १. 'दो आँसू' (उपाध्याय केवलमुनिजी) में 'ऋण' शीर्षक कथा का सार-संक्षेप, पृ. ६२ से ७७ तक Jain Education International: For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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